झूक कर रात भर आसमान

                                                              चित्र - गूगल से साभार

झूक कर रात भर आसमान रोता रहा,
मैं अपने दायरे में सिमटकर सोता रहा,
क्या खबर थी युँ उजड़ जायेगा गुलशन,
हर साल एक जैसा पौधा बागबाँ बोता रहा,
क्या पता इस हादसे में मेरा भी हाथ है,
कुछ देर तलक यह एहसान मैं ढोता रहा,
कैसे आयेगी भोर जब रात ढलती नहीं,
ओढ़ कर लाचारियों को सुर्य भी छुपता रहा,
मुस्कान देती थी ह्रदय की झुमती क्यारियाँ,
नृत्य वर्षा का जब मेरे आँगन होता रहा,
कल "अतुल" को लोग क्युँ धकेल कर चल दिये,
सोचकर यह गुलस्ताँ रात भर रोता रहा॥

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