नारी

                                                            चित्र - गूगल से साभार


कलम उठायी थी मैंनें,
लिखने को अपने उर की बात।
सोचा दो-चार बातें लिखूँ,
जिससे हो जाये नारी सम्मान,
नजर घुमायी सांसारिक उपवन में,
खोजन लगा गरिमामयी पहचान,
नहीं मिली कोई नारी की पहचान,
नारी अस्तित्व भी दिखा बेजान,
बदला सा नजर आया सारा जमाना,
जिसमें बदल गया नारी का पैमाना,
अब परदे के पीछे रहना भाता नहीं,
गृह-देवी बनना इसको सुहाता नही,
पर माँ बहन बेटी बहू देवी स्वरुपा नारी,
सृष्टि रचयिता सर्वप्रथम सम्मान की अधिकारी,
इनसे सृष्टि की उत्पत्ति दुनिया जिसकी आभारी,
हैं लक्ष्मी दुर्गा काली जैसी यह पावन,
सीता सावित्री मीरा रुप में लगती मनभावन,
जब कभी विकट स्थिति ध्ररा पर है आयी,
तब रणचण्डी रुप धर बनी है लक्ष्मीबाई,
तभी तो कुछ इतिहास के पन्ने है सिमटाई,
मैं कहता हूँ नारी दर्जा जीवन में है पहला,
अगर नर नहला तो उस पर यह है दहला,
पुज्यनीय है देवी समझ कर इसे पुजो,
शायद घर का सारा माहौल बदल जायेगा
एक छोटा सा घर भी जन्नत बन जायेगा॥

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