हिन्दी साहित्य और मैं : लेख

                                आज विश्व की सबसे कठिन भाषाओं में हिन्दी का दूसरा स्थान है प्रथम पर भी भारत की हि भाषा संस्कृत है जो भारतीय संस्कृति को अपने आप में समाहित किये हुये है। मेरा मानना है कि जब कोई भी भाषा या साहित्य अपने अन्दर रग-रग में बसती हो तो वह उतना ही आसान लगती है जितना ना समझ आने वालों को कठिन। कुछ ऐसा ही मेरा और हिन्दी साहित्य का नाता है। हिन्दी साहित्य का मैं इस समय छात्र तो नहीं हूँ, फिर भी हिन्दी साहित्य मेरे रग-रग में है।
                                 "अपनी भूमि से प्यार है, अपनी भाषा से प्यार है।
                                   हिन्दी बिना सोचूँ कुछ भी, सब कुछ निराधार है॥"
                                 हिन्दी भाषा से मेरा इतना ज्यादा लगाव है कि मैं उसे शब्दों से परिभाषित नहीं कर सकता। जब भी खुश के पल होते, मस्ती के पलों में, किसी भी प्रकार के उत्साह, आनन्दित करने वालों क्षणों में अगर कोई सबसे ज्यादा सूकून देता है तो वह हिन्दी साहित्य है। ऐसे क्षणों में हिन्दी साहित्य की कुछ पक्तियाँ जेहन में आती और उस माहौल को और भी ज्यादा सुहाना बना देती।
                                  "कितनी मर्यादित है यह करती हमें आनन्दित।
                                    संयमी रखती है सर्वदा हमको इसमें इसका हि उपकार है॥"
                             जब भी मेरा मन अशान्त/क्लान्त या भी अवशादपूर्ण होता है तब भी उससे उबारने के लिये नये जोश के साथ उन अवशादों से बाहर निकलने के लिये प्रेरित करती रहती है हिन्दी साहित्य की कुछ पंक्तियाँ। जब भी मैं थोड़ा परेशान सा होता हूँ तो बस उन से उबरने के लिये हिन्दी साहित्य का सहारा लेता हूँ और उन पलों को ही हिन्दी काव्य या गद्य का रुप दे देता। अगर हिन्दी साहित्य को देखा जाय तो हिन्दी साहित्य में सब कुछ भरा है। किसी का प्रेम, किसी का वियोग, किसी का सुख, किसी का दु:ख, किसी का करूण, किसी का क्रन्दन तो किसी का रुद्न और किसी का करूण विलाप सारे पल मौजुद है इस साहित्य। सारे पलों को अपने आप में समाहित करने का तो गुण इस साहित्य में है ही साथ ही साथ इस साहित्य का भाषा प्रेम भी अलग ही दिखता है। अगर हिन्दी में उर्दू भाषा का शब्द प्रयोग करे तो उर्दू जैसी, फारसी का प्रयोग करे तो फारसी जैसी प्रतित होती है।
                                    "प्रेम निवेदन करे और वियोगी कि व्यथा वर्णना।
                                      हर तरह के शब्दों का इस साहित्य में भरमार है॥
                                      एक-एक अक्षर सुभाषित पुष्प कि भाँति लगे।
                                      लगता इसके बिना साहित्य वाटिका श्रृंगार रहित है॥
                         जब भी मैनें हिन्दी साहित्य और खुद को देखता हूँ तो मुझे प्रतीत होता है कि हिन्दी साहित्य एक ऐसा साहित्य है जिसमें कुछ अस्तित्व अपनापन का झलकता है, जिसमें हम अपने भावों को बड़ी आसानी से व्यक्त कर सकते है। हिन्दी साहित्य के अलावा भी और साहित्य है, जिनकी मैं अवहेलना या गलत नहीं ठहरा सकता क्युकिं साहित्य और धर्म मेरी समझ से एक जैसे है। जिनसे हमारा लगाव या जुड़ाव गहरा/अधिक होगा वह हमारे लिये तो बेहतर है लेकिन ये जरूरी नहीं कि सबके लिये बेहतर हो। ये अपनी -अपनी सोच पर निर्भर करता है कि कौन कितना बेहतर है। हमारे लिये तो सब बेहतर है किसी को मैं ओछा नहीं कह सकता। मेरा लगाव हिन्दी साहित्य के प्रति ज्यादा है इसलिये मेरे लिये बेहतर है, ये जरूरी नहिं कि आप के लिये भी हो। दूसरे शब्दों में कहूँ तो जिसका जिससे ज्यादा लगाव होता है वह ही दुनियाँ में सबसे बेहतर है उससे बेहतर कुछ प्रतीत/प्रदर्शित ही नहीं हो पायेगा और ना आप देख पायेंगें।
                                       "गर्व है हमें व्यक्तित्व पर अपने असीम।
                                         हूँ मैं हिन्दी भाषी यह मेरे अस्तित्व कि पुकार॥"
                      अगर हम किसी साहित्य की बात करें और प्रश्न करें कि "साहित्य क्या है?" मेरी छोटी और सीमित सोच के अनुसार एक मात्र विचार-विनिमय का साधन है। जिससे जुड़ कर हम अपने विचारों को एक-दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करते है और सामने वाले के पास उस साहित्य कि समझ है तब तो ठीक है नहीं तो फिर एकअन्जान सी वस्तु/विशेष। 
                                        "भाषा होती है केवल विचार विनिमय का साधन।
                                          ना कोई है पांडित्य प्रदर्शन ना कोई है व्यापार॥
                          वैसे हम भारतवासियों को जिस प्रकार अपने संस्कृति पर गर्व है, ठीक वैसे ही अपने हिन्दी साहित्य और संस्कृत भाषा पर गर्व होना चाहिये कि दुनियाँ कि सबसे कठिन भाषा अपने भारत की दी हुयी है जिसमें हिन्दी साहित्य से हिन्दी हमें बहूत अच्छे से आती है। हमें अपने भारतवासी होने और अपनी हिन्दी भाषा पर गर्व है।

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