पर्वत भी रोक न पाया

चित्र - गूगल से साभार


पर्वत भी रोक न पाया कभी नदी को,
कोई आकर यह बात बताये बेबसी को,
खिड़कियो से पर्दों को हटा दो साथियों.
बुला कर लाना है सूरज की रोशनी को,
रंग तो बहूत है पर नमीं महकती नहीं,
फिर भी सजा रहा हूँ कागजी तस्वीरों को,
दिल के नदी का पानी तो यूँ सुखता गया,
फिर क्या जवाब दूँ यादों की जलपरी को,
खुद समय की धार में बहती है जिन्दगानी,
पर खुब निभाती है किस्मत बेकसी को,
बस हाल ही सुनकर सकते में आ गये,
अच्छा हुआ देखा नहीं आँखों की बानगी को,
रंग भरो "अतुल" फूलों से भरा यह चमन है,
पर ढुढ़ती है आँख हमेशा खिलती कली को॥

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