एक बार रुक जाती

                                                               चित्र - गूगल से साभार

एक बार रुक जाती मेरी आवाज सुनकर,
बहुत देर से खड़ा था मैं ख्वाब बुनकर,
क्या किया था मैनें जो तमाशा यूँ हुआ,
काफिला भी रुक गया चित्कार सुनकर,
हवा भी रुक गयी गुमसुम हुयी थी फिजायें,
रास्ते भी सिमट गये थे सुनकर मेरी आहे,
सबने तो देख लिया मेरी बेचैनी की कसक,
लेकिन तुम्हे ना दिखी ये हरकत बेशक,
फूल भी रो रहे थे चन्द शबनम लेकर,
तुझे शिकन ना हुयी मेरी आवाज गुनकर,
कैसा सन्नाटा था गजब का मेरी राहों में,
साँस रोके जब मैं पड़ा था मौत की बाहों में,
अब क्यु मगरुर हो रहा "अतुल" खुद से,
वक्त भी तो नहीं रुका तेरे रोने से॥

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