चाँदनी चार पल की

                                                               चित्र - गूगल से साभार

चाँदनी चार पल की अब मलिन हो गयी,
आँखों की चमक आँखों में ही खो गयी,
कहाँ-कहाँ तक खाक छान मारी थी मैनें,
सोच की नदी फिर रेत बनकर सो गयी,
रो चुका हूँ सब सोचकर गुजरा हादसा,
मिल ना सकी वो महक जो चली गयी,
शाम तलक तो धूप भी दे रही थी हौसला,
रात में दिल की शबनम बेवशी रो गयी,
एक माला थी किसी के प्यार के विश्वाश की,
जिन्दगी के इस धार में वो निशानी खो गयी,
झाँक रही जवाँ किरनें अब सुर्ख आकाश से,
फिर क्युँ आज निराशा की घटा बड़ी हो गयी,
सुखते लम्हों के झरतें गुलशन तो चुन रहा "अतुल"
बीज जिनका वो दिल के नमीं पर बो गयी॥

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