देखकर जो छू ना पाये


                                                             चित्र - गूगल से साभार

देखकर जो छू ना पाये वो सितारे बन गये,
झिलमिलाती रोशनी के अब नजारे बन गये,
जो नदी कभी मचलती थी ताजगी के धार से,
वो जाकर सागर में मिल अब खारे बन गये,
वो हवायें मायूस है जो आग छुने आयी थी,
बुझकर अंगारे कोयला सारे के सारे बन गये,
जो खेल से चुककर हार कबूल करते थे,
फिर क्युँ बिना खेले ही वो हारे बन गये,
जो खेलते थे कभी मझधार में तुफान से,
फिर क्युँ सिमटती जिन्दगी के किनारे बन गये,
हर कलीं का फूल बनना बात है आम सी,
फिर इस खबर के सिलसिले क्युँ न्यारे बन गये,
जो कल तलक महका रहे थे सबकी जिन्दगी,
फिर क्युँ आज वो सपने राख हमारे बन गये,
जो फुल थे आस के मुरझा गये है "अतुल",
आज उपवन के काँटे भी उनको दुलारे बन गये॥

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