दराजों से झाँकती


                                                            चित्र - गूगल से साभार

दराजों से झाँकती लाचारियों को देखिये,
सुर्ख आँखों में बसी चिन्गारियों को देखिये,
वक्त की गलियों में खो गयी मासूमियत,
अधखिली मसली गयी फूलवारियों को देखिये,
आज भी आँसू छिपे है ज्यादति के जब्त में,
बेबसी की राह में उन दुश्वारियों को देखिये,
मौसम की सिहरन में दफ़न लहरें हो गयी,
जिन्दगी की झील में हमवारियों को देखिये,
आ गयी सामने पहाड़-सी बनकर कठिन,
लड़ने की अब नयी तैयारियों को देखिये,
देखिये उन बाग को जिनमें पेड़ भी मौन है,
लग गयी उन्हे जो उन बिमारियों को देखिये,
बुझे दीप की तरह खो गया "अतुल" अन्धेरे में,
और वहाँ काँटों भरी उन क्यारियों को देखिये॥ 

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