नयी खुशबू लेकर हवा

                                                          चित्र- गूगल से साभार

नयी खुशबू लेकर हवा अब जमाने तक आ पहूँची,
उम्मींद की फिजायें कलियाँ खिलाने तक आ पहूँची,
झील सी आँखों में जो मचलती है लहरों की रंगत,
वो दिल की बात गीतों को बुलाने तक आ पहूची,
सादगी किसी की आँखो में लेकर वो रंग आयी,
चाहत गुस्से की बात को भुलाने तक आ पहुँची,
एक दिन ढहेगीं झूठ की इमारतें देखना साथियों,
हक़ की नजर हिम्मत दिखाने तक आ पहूँची,
दिये थे जख्म किसने ये बहस अब खत्म करो,
सुनो! अब बात मरहम लगाने तक आ पहूँची,
इन्द्रधनुष का हँसीं मंजर, है घटा आसमानी,
जमीं खेत से बागों को सजाने तक आ पहूँची,
"अतुल" ने हँस कर हल्कापन दिया फिजाओं को,
और वो अब बिगड़ी बात को बनाने तक आ पहूँचे॥

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