चित्र - गूगल से साभार
मेरी तन्हाईंयाँ मुझसे वो बाँट लेती थी।
चेहरा मेरा पढ़कर मुझे डाँट देती थी॥
हमराज थी मेरी जो मुझे फूटा मिला।
वो आईना थी मेरी जो टूटा मिला॥
खत मेरा लिखा मुझे वापस मिला।
ताजा गुलाब भी मुझे सुखा मिला॥
चाहत मेरी उसने कबूल की ही नहीं।
दिल भी एक गरीब से रुठा मिला॥
किसी का वास्ता ही जब मुझसे नहीं रहा।
तब से मेरा यकीन खुद पर नहीं रहा॥
मजबुरियाँ उसकी मुझे तब पता चली।
जब मेरा नसीब मुझसे रोता मिला॥
मुझे अब न शिकवा न गिला रहा।
मेरी छोटी जिन्दगी का ये सिलसिला रहा॥