संक्षिप्त महाभारत

                                                          चित्र - गूगल से साभार



वो सभा सजी लाजवाब थी।

खेल खेलने की कड़ी ही खराब थी।
उस खेल में गलत करने की पहले से ही प्लान थी।
कौरवों को जीताना मामा शकुनि की शान थी।
हुआ भी कुछ ऐसा ही वो पाण्डव-हार के पल भी महान थे।
लेकिन द्रोपदी को खेल में दाव पर लगाना शर्म की बात थी।
द्रोपदी को बीच सभा में खींच लाना दुर्योधन के अभिमान की विसात थी।
फिर चीर-हरन करने का आदेश देना ही दिक्कत की बात थी।
द्रोपदी का सहायता माँगना नारी अलाप की मानो किताब थी।
अर्जुन-भीम प्रतिज्ञा महाभारत की सबसे बड़ी चित्कार थी।
चीर-हरण के दौरान श्री कृष्ण को बुलाना आत्मसम्मान की चिघाड़ थी।
चीर-हरण बचाना भगवान श्री कृष्ण के इज्जत की बात थी।
चीर-हरण और खेल खेलना ही महाभारत की शुरुआत थी।
महाभारत में अधर्मियों का विनाश करना भी अनिवार थी।
शायद कोई अब बचा नहीं जिसे महाभारत का कुछ पता ना हो।
मेरे सीमित सोच-विचार से सब कृष्ण की ही चाल थी।
अधर्म पर धर्म की हो विजय सभी देवताओं की माँग थी।
मेरे द्वारा लिखी गयी बातें बस महाभारत की सार थी।
यह सब लिखी बातें महाभारत की संक्षिप्त बयान थी।