झूक कर रात भर आसमान

                                                              चित्र - गूगल से साभार

झूक कर रात भर आसमान रोता रहा,
मैं अपने दायरे में सिमटकर सोता रहा,
क्या खबर थी युँ उजड़ जायेगा गुलशन,
हर साल एक जैसा पौधा बागबाँ बोता रहा,
क्या पता इस हादसे में मेरा भी हाथ है,
कुछ देर तलक यह एहसान मैं ढोता रहा,
कैसे आयेगी भोर जब रात ढलती नहीं,
ओढ़ कर लाचारियों को सुर्य भी छुपता रहा,
मुस्कान देती थी ह्रदय की झुमती क्यारियाँ,
नृत्य वर्षा का जब मेरे आँगन होता रहा,
कल "अतुल" को लोग क्युँ धकेल कर चल दिये,
सोचकर यह गुलस्ताँ रात भर रोता रहा॥

पर्वत भी रोक न पाया

चित्र - गूगल से साभार


पर्वत भी रोक न पाया कभी नदी को,
कोई आकर यह बात बताये बेबसी को,
खिड़कियो से पर्दों को हटा दो साथियों.
बुला कर लाना है सूरज की रोशनी को,
रंग तो बहूत है पर नमीं महकती नहीं,
फिर भी सजा रहा हूँ कागजी तस्वीरों को,
दिल के नदी का पानी तो यूँ सुखता गया,
फिर क्या जवाब दूँ यादों की जलपरी को,
खुद समय की धार में बहती है जिन्दगानी,
पर खुब निभाती है किस्मत बेकसी को,
बस हाल ही सुनकर सकते में आ गये,
अच्छा हुआ देखा नहीं आँखों की बानगी को,
रंग भरो "अतुल" फूलों से भरा यह चमन है,
पर ढुढ़ती है आँख हमेशा खिलती कली को॥

रास्ते अनन्त मिलेगें

                                                                       चित्र - गूगल से साभार

मरघट-सी सुनी रातों में जीवन के अन्त मिलेगें,
जीवन के इस कोलाहल में रास्ते अनन्त मिलेगें,
जनम-जनम जैसी बातों से अपना दिल बहलाओ,
खेल है सब तकदीर का अपने मन को समझाओ,
जीवन में जो कर रहे पलायन ना कभी संग चलेगें,
जीवन के इस कोलाहल में रास्ते अनन्त मिलेगें,
भागना ही है जब जीवन के विरानियों से तो भागो,
बेजान सपनों से तो पाँव भी ना जमीं पर जमेगें,
सच से आँख चुराने वाले दर्द के मोती नहीं चुनेगें,
जीवन के इस कोलाहल में रास्ते अनन्त मिलेगें,
सपने छूने को मन में है एक बेमानी-सा एहसास,
जीवन जीने का भी मन को है एक बेमानी विश्वास,
आशा और निराशा दोनों ही जीवन पर्यन्त रहेगें,
जीवन के इस कोलाहल में रास्ते अनन्त मिलेगें,
शोर-शराबे से भाग अब बिरानियों से उब गया,
तुफ़ानों से डरकर भागा अब साहिल पर टूट गया,
अब गहरे सागर में भी हलचल वाले शीप पलेगें,
जीवन के इस कोलाहल में रास्ते अनन्त मिलेगें,
जब अंकूर फ़ुटेगा तब धरती ही अवरोध करेगी,
नदियाँ अपने राह चलकर कुदरत का विरोध करेगी,
दीये भी रातभर जलकर अन्धेरे से खूब लड़ेगें,
जीवन के इस कोलाहल में रास्ते अनन्त मिलेगें,
शान्ति मार्ग पर चलने से पहले विराम मिलेगें,
जीवन के अवशेष को सदा मृत्यु उपनाम मिलेगें,
बाँझ शान्ति धरती से सच के कभी ना फूल खिलेगें,
जीवन के इस कोलाहल में रास्ते अनन्त मिलेगें॥ 

आओ मिलकर गाये हम सब

                                                              चित्र - गूगल से साभार

आओ मिलकर गाये हम सब,
गाथा इस संसार की।
गुँज उठे यह सारा अपवन,
दम लगा दो आवाज की।
हम सब भी ऐसे चमक उठे,
जैसे आभा सुर्य के प्रकाश की।
दीनों पर हम बरस पड़े,
बन दयाबुँद बरसात की।
अपनी शक्ति प्रयोग करे हम,
जो है अपने अधिकार की।
यहा न कोई ऊँचा-नीचा,
यहाँ न कोई राजा-रंक।
सबको मिले प्यार एक-सा,
जैसे हो माँ धरती का अंक।
मनुज एक है विश्व एक है,
यह बात मानो हर एक की।
हर देश के हम भाई- भाई है,
एकता हो यह प्रबल विचार की।
मिलकर सबके कदम बढ़े,
पुष्प है हम एक हार की॥

जिन्दगी की कहानी लिख दूँ

                                                              चित्र - गूगल से साभार

तेरे चेहरे पर अपने जिन्दगी की कहानी लिख दूँ,
ऐ अजनवी तेरे आँखों में अपनी निशानी लिख दूँ.
तेरे हाथों की इन लकिरों में मैं शामिल हूँ या नहीं,
लड़कर लकिरों में हालात-ऐ-इश्क दिवानी लिख दूँ,
झुका मत पलकें इस कदर ये ठीक नहीं सितमगर,
मुरीद तेरे छूवन की अपनी आत्मा रुहानी लिख दूँ,
बादलों पर भी लिखे बारिश के अपने ही लफ़्ज थे,
बरसने की बेसबब मुसल्लम मेहरबानी तो लिख दूँ,
ख्वाब भी मेरे बन्जारें थे जिन्हे दर-दर भट्कन थी,
तेरे बेवजह नजर उठाने में सपने में जवानी लिख दूँ,
देख कर मंजर अक्सर सम्भल ही जाते होगे दिवाने,
बदल दिये कायदे मोहब्बत के वो दास्ताँ पुरानी लिख दूँ,
असमंजस में डाल देती है मुझे तेरी खामोशी अक्सर,
जिनकी वजह से अपनी रुकती साँसे रुहानी लिख दूँ,
दस्तक भी पुछते है तेरा कहा है आज कल ठिकाना, 
बोल अपनी नजर में  कदर की कथा सुहानी लिख दूँ,
किस दिल में छूपा है आजकल तेरा घर ये तो बता,
उस दिल पर भी गीत गज़ल नगमों के सितारे लिख दूँ॥

आँखों में झिलमिलाते चलो

                                                               चित्र - गूगल से साभार

सुर्ख आँखों में झिलमिलाते चलो,
दिल में नयी लहरें उठाते चलो,
दोनों किनारे है छलछलाते हुये,
अब जोश में होश उड़ाते चलो,
दीन दुनियाँ की तोड़ दिवारें,
जाम से जाम को टकराते चलो,
इस जमाने को तिलमिलाने दो,
इसके तौर-तरीकों को उड़ाते चलो,
आँधियों जैसे तोड़ दो ये सन्नाटा,
बन कर बौछार दनदनाते चलो,
चीर दो बादलों की छाती अब,
बिजली जैसे तड़तड़ाते चलो,
रुप का तो अपना अलग पैमाना,
मस्त भौरों जैसा गुनगुनाते चलो,
नन्हा सा एक अन्कूर है "अतुल"
छोड़ इसे हवा-सा सनसनाते चलो॥

दराजों से झाँकती


                                                            चित्र - गूगल से साभार

दराजों से झाँकती लाचारियों को देखिये,
सुर्ख आँखों में बसी चिन्गारियों को देखिये,
वक्त की गलियों में खो गयी मासूमियत,
अधखिली मसली गयी फूलवारियों को देखिये,
आज भी आँसू छिपे है ज्यादति के जब्त में,
बेबसी की राह में उन दुश्वारियों को देखिये,
मौसम की सिहरन में दफ़न लहरें हो गयी,
जिन्दगी की झील में हमवारियों को देखिये,
आ गयी सामने पहाड़-सी बनकर कठिन,
लड़ने की अब नयी तैयारियों को देखिये,
देखिये उन बाग को जिनमें पेड़ भी मौन है,
लग गयी उन्हे जो उन बिमारियों को देखिये,
बुझे दीप की तरह खो गया "अतुल" अन्धेरे में,
और वहाँ काँटों भरी उन क्यारियों को देखिये॥ 

आज कल नींद नहीं आती

                                                              चित्र- गूगल से साभार

आज - कल हमें थोड़ी भी नींद नहीं आती,
सच ये है कि याद भी किसी की नहीं आती,

दोस्तों क्या बताऊ मुझे दोस्ती नहीं आती,
सच यह भी है कि हमें दुश्मनी नहीं आती,

जो चुम ले आपके होठों को हर बार,
हमको तो ऐसी शायरी भी नहीं आती,

मालूम है चाहत की जिन्दगी नहीं मिलती,
ये सच है कि चाहत कि मौत भी नहीं आती,

इस जहाँ में तो अपनी-अपनी हिमाकते ठहरी,
ये सच है आज हमको खुद पर हँसी नहीं आती, 

दिल लगाने कि तो कभी मैं सोचता भी नहीं,
क्युकि "अतुल" को दिल्लगी नहीं आती॥

नयी खुशबू लेकर हवा

                                                          चित्र- गूगल से साभार

नयी खुशबू लेकर हवा अब जमाने तक आ पहूँची,
उम्मींद की फिजायें कलियाँ खिलाने तक आ पहूँची,
झील सी आँखों में जो मचलती है लहरों की रंगत,
वो दिल की बात गीतों को बुलाने तक आ पहूची,
सादगी किसी की आँखो में लेकर वो रंग आयी,
चाहत गुस्से की बात को भुलाने तक आ पहुँची,
एक दिन ढहेगीं झूठ की इमारतें देखना साथियों,
हक़ की नजर हिम्मत दिखाने तक आ पहूँची,
दिये थे जख्म किसने ये बहस अब खत्म करो,
सुनो! अब बात मरहम लगाने तक आ पहूँची,
इन्द्रधनुष का हँसीं मंजर, है घटा आसमानी,
जमीं खेत से बागों को सजाने तक आ पहूँची,
"अतुल" ने हँस कर हल्कापन दिया फिजाओं को,
और वो अब बिगड़ी बात को बनाने तक आ पहूँचे॥

चाँदनी चार पल की

                                                               चित्र - गूगल से साभार

चाँदनी चार पल की अब मलिन हो गयी,
आँखों की चमक आँखों में ही खो गयी,
कहाँ-कहाँ तक खाक छान मारी थी मैनें,
सोच की नदी फिर रेत बनकर सो गयी,
रो चुका हूँ सब सोचकर गुजरा हादसा,
मिल ना सकी वो महक जो चली गयी,
शाम तलक तो धूप भी दे रही थी हौसला,
रात में दिल की शबनम बेवशी रो गयी,
एक माला थी किसी के प्यार के विश्वाश की,
जिन्दगी के इस धार में वो निशानी खो गयी,
झाँक रही जवाँ किरनें अब सुर्ख आकाश से,
फिर क्युँ आज निराशा की घटा बड़ी हो गयी,
सुखते लम्हों के झरतें गुलशन तो चुन रहा "अतुल"
बीज जिनका वो दिल के नमीं पर बो गयी॥

देखकर जो छू ना पाये


                                                             चित्र - गूगल से साभार

देखकर जो छू ना पाये वो सितारे बन गये,
झिलमिलाती रोशनी के अब नजारे बन गये,
जो नदी कभी मचलती थी ताजगी के धार से,
वो जाकर सागर में मिल अब खारे बन गये,
वो हवायें मायूस है जो आग छुने आयी थी,
बुझकर अंगारे कोयला सारे के सारे बन गये,
जो खेल से चुककर हार कबूल करते थे,
फिर क्युँ बिना खेले ही वो हारे बन गये,
जो खेलते थे कभी मझधार में तुफान से,
फिर क्युँ सिमटती जिन्दगी के किनारे बन गये,
हर कलीं का फूल बनना बात है आम सी,
फिर इस खबर के सिलसिले क्युँ न्यारे बन गये,
जो कल तलक महका रहे थे सबकी जिन्दगी,
फिर क्युँ आज वो सपने राख हमारे बन गये,
जो फुल थे आस के मुरझा गये है "अतुल",
आज उपवन के काँटे भी उनको दुलारे बन गये॥

सुबह जाती है शाम आती है


                                                             चित्र - गूगल से साभार

सुबह जाती है शाम आती है,
दोपहर इन पर नही आती,
कब तलक वो मेरे गाँव को देखे,
यहाँ शहर की बेरुखी नहीं आती,
हम आराम चैन से क्युँ ना बैठे,
हमको तो आशिकी नहीं आती,
सबको वो सरगोशी नहीं मिलती,
हमें सब पर दिवानगी नहीं आती,
मेरे मोहल्ले के बन्द गलियों में,
रात दिन तो रोशनी नहीं आती,
कोई शिकवा गिला ना हो होठों पर,
हमको वो सादगी नहीं आती,
जिसे आवाज दे रहा मैं इस तलक,
जाने क्युँ उनको खुशी नहीं आती,
मै बढ़ाऊ उनका मन सर तक,
 इतनी भी बन्दगी मुझे नहीं आती॥

खिल रही मौसमों के आने से


                                                               चित्र - गूगल से साभार

जो खिल रही मौसमों के आने से,
वो झर गयी थी कली कल बहाने से,
देखता रहा हूँ उसे सदा से लेकिन,
महक कब तलक आयी है बुलाने से,
आग ने जब छू लिया मेरा दामन,
कभी बुझी भी है शमां जलाने से,
ऐ हवा तुझे क्युँ मिली भटकन,
तू क्युँ ना लगी किसी ठिकाने से,
तू कह ले अपने दिल की लगी,
हाल मत पुछ मेरे गरीबखाने से,
अगर तेरी-मेरी है एक ही मंजिल,
तो चल साथ बनकर नदी मुहाने से,
मुझे तो बस इतना यकीन था,
समझ आयेगी जिन्दगी आजमाने से,
जब-जब आग लगी हो दिल में,
कहाँ बुझी वो किसी के बुझाने से,
आखिर किसको था यहाँ शिकवा,
मेरे अपने घर से चले जाने से॥

तुमने मेरा जीवन रंग दिया

                                                               चित्र - गूगल से साभार


तुमने मेरा जीवन रंग दिया अनुराग से,
मैं तो जी रहा था अपना जीवन वैराग से,
खामोश जीवन भर दिया मधुराग से,
तुम्हारी चाहत है मुझे इस संसार से,
लगता है मुलाकात भी हुयी बड़े भाग से,
जी रहा अलग जिन्दगी मिलने के बाद से,
सोच है जुड़ जाये मेरा नाम तेरे नाम से,
जिन्दगी की हर शुरूआत हो तेरे साथ से,
ह्रदय अरविन्द भी खिल जाता तेरे मुस्कान से,
रोम-रोम जग जाता है तेरे जज्बात से,
सपनें सजते रहते है एक अरमान से,
तुम्हे पाना है भले दिखो अन्जान से,
सब अच्छा ही होगा गले लगो स्नेह-भाव से,
बाटेगे दुख दर्द अभी सवारी करो प्रेम-नाव से॥

एक बार रुक जाती

                                                               चित्र - गूगल से साभार

एक बार रुक जाती मेरी आवाज सुनकर,
बहुत देर से खड़ा था मैं ख्वाब बुनकर,
क्या किया था मैनें जो तमाशा यूँ हुआ,
काफिला भी रुक गया चित्कार सुनकर,
हवा भी रुक गयी गुमसुम हुयी थी फिजायें,
रास्ते भी सिमट गये थे सुनकर मेरी आहे,
सबने तो देख लिया मेरी बेचैनी की कसक,
लेकिन तुम्हे ना दिखी ये हरकत बेशक,
फूल भी रो रहे थे चन्द शबनम लेकर,
तुझे शिकन ना हुयी मेरी आवाज गुनकर,
कैसा सन्नाटा था गजब का मेरी राहों में,
साँस रोके जब मैं पड़ा था मौत की बाहों में,
अब क्यु मगरुर हो रहा "अतुल" खुद से,
वक्त भी तो नहीं रुका तेरे रोने से॥

लबों पर जुबान को ऐसे

                                                                 चित्र - गूगल से साभार

लबों पर जुबान को ऐसे न फिराओ,
बुझी प्यास फिर से तरसने लगेगी।

शरारत से पलकें ना उठाओ प्रिये,
फिर से धड़कन मचलने लगेगी।

पारदर्शी दुपट्टे से चेहरा ना छुपाओ,
नहीं तो जवाँ हसरतें तड़पने लगेगी।

मिला हुश्न है तो थोड़ा तरस खाओ,
नहीं तो मोहब्बत भी भटकने लगेगी।

ऐसे अपनी जुल्फों को मत लहराओ,
नहीं तो फिर प्यार बगियाँ महकने लगेगी।

अब तिरछी नजर से कयामत ना ढाओ,
वरना फिर से तबियत बिगड़ने लगेगी॥

तेरा इन्तजार नहीं

                                                           चित्र - गूगल से साभार

अब मुझे तेरा इस जिन्दगी में इन्तजार नहीं,
अब मिलोगी इसका भी कोई आसार नहीं,
अब मुझे तेरा इस जिन्दगी में इन्तजार नहीं,
लाख फासले हुआ करते थे नजदिकियों में,
लेकिन मेरे प्यार में कभी कोई दरार नहीं,
तुम मुझे दिल में ना सही यादों में रखोगी,
यह ऐसी हसरत है जिसका कोई आधार नहीं,
चाँद-तारे ना सही तो ऐसा भी नही कि खुशियाँ ना दे पाऊँ,
मैं अकेला जरूर हूँ पर इतना भी अभी लाचार नहीं,
मुट्ठी से रेत की तरह फिसल कर दूर होती रही,
मैं रोकता तुम्हें मेरा तुमपर इतना भी अधिकार नहीं,
तुमसे मोहब्बत करने का सिला मुझे यह मिला,
तेरे इन्कार के बाद कोई सवाल जवाब नहीं,
अब तेरी मोहब्बत भी मिल जाये तो क्या?
तेरे प्यार में इतना रोया जिसका कोई हिसाब नहीं,
आज भी मेरे शेर प्रकाशित होते है तेरे मुस्कूराहटों से,
अब तो ये मान लो मैं पहले से बेकार नहीं,
अब मिलोगी इसका भी कोई आसार नहीं,
अब मुझे तेरा इस जिन्दगी में इन्तजार नहीं,

नारी

                                                            चित्र - गूगल से साभार


कलम उठायी थी मैंनें,
लिखने को अपने उर की बात।
सोचा दो-चार बातें लिखूँ,
जिससे हो जाये नारी सम्मान,
नजर घुमायी सांसारिक उपवन में,
खोजन लगा गरिमामयी पहचान,
नहीं मिली कोई नारी की पहचान,
नारी अस्तित्व भी दिखा बेजान,
बदला सा नजर आया सारा जमाना,
जिसमें बदल गया नारी का पैमाना,
अब परदे के पीछे रहना भाता नहीं,
गृह-देवी बनना इसको सुहाता नही,
पर माँ बहन बेटी बहू देवी स्वरुपा नारी,
सृष्टि रचयिता सर्वप्रथम सम्मान की अधिकारी,
इनसे सृष्टि की उत्पत्ति दुनिया जिसकी आभारी,
हैं लक्ष्मी दुर्गा काली जैसी यह पावन,
सीता सावित्री मीरा रुप में लगती मनभावन,
जब कभी विकट स्थिति ध्ररा पर है आयी,
तब रणचण्डी रुप धर बनी है लक्ष्मीबाई,
तभी तो कुछ इतिहास के पन्ने है सिमटाई,
मैं कहता हूँ नारी दर्जा जीवन में है पहला,
अगर नर नहला तो उस पर यह है दहला,
पुज्यनीय है देवी समझ कर इसे पुजो,
शायद घर का सारा माहौल बदल जायेगा
एक छोटा सा घर भी जन्नत बन जायेगा॥

एक शाम खामोश थी

                                                         चित्र - गूगल से साभार


एक शाम खामोश थी,
दिमाग की उलझन थी,
मैं बैठ अकेला छत पर,
क्षितिज नभ निहार रहा।
किसी गहरें भावों में गुम,
अपने-आप को सुलझा रहा।
अचानक भाव उर में उठे,
ये दिल की सच बता रहा।
कोई आये मेरे पास बैठे,
दो-चार हम बातें करें।
कुछ अपनी वो सुनाये,
कुछ अपनी हम सुनाये।
कुछ उनका मेरे पर हक हो,
कुछ मेरा उन पर हो अधिकार।
पर क्या बात करता अकेला ?,
खुद खामोश निरुत्साही निश्तब्ध।
कहने के लिये तो मैं था वहा,
लेकिन सुनने के लिये थी दिवारें।
उस पल मैं चाहा था कुछ कहना,
पर अपनी वाणी ही साथ नहीं थी।
तब एक बिचार चल पड़ा ह्र्दय में,
जब पड़ू मैं ऐसी विकट स्थिति में।
तब कोई मुझे पढ़ ले मेरे चेहरे से,
और आकर दे दे मुझे दिलासा।
पकड़ ले आकर मेरा हाथ,
अकेला नहीं हूँ ऐसा कहकर।
ऐ जिन्दगीं! क्या तू ऐसा करेगी?
कभी आकर मेरे साथ बैठेगी?
जब जेहन में हौसला कम हो,
क्या तब पकड़ सकेगी हाथ?
जब हारता नजर आउँ तुझसे,
क्या तब तू ढाढस दे पायेगी?

मेरी तन्हाईंयाँ मुझसे वो बाँट लेती


                                                                चित्र - गूगल से साभार




मेरी तन्हाईंयाँ मुझसे वो बाँट लेती थी।

चेहरा मेरा पढ़कर मुझे डाँट देती थी॥


हमराज थी मेरी जो मुझे फूटा मिला।

वो आईना थी मेरी जो टूटा मिला॥


खत मेरा लिखा मुझे वापस मिला।

ताजा गुलाब भी मुझे सुखा मिला॥


चाहत मेरी उसने कबूल की ही नहीं।

दिल भी एक गरीब से रुठा मिला॥


किसी का वास्ता ही जब मुझसे नहीं रहा।

तब से मेरा यकीन खुद पर नहीं रहा॥


मजबुरियाँ उसकी मुझे तब पता चली।

जब मेरा नसीब मुझसे रोता मिला॥


मुझे अब न शिकवा न गिला रहा।

मेरी छोटी जिन्दगी का ये सिलसिला रहा॥

होली का त्यौहार

                                                                चित्र - गूगल से साभार



लो आ गया होली का त्यौहार।

रंग लगाओ मुझे और दो प्यार।
है मेरे दिल में ख्वाहिशें हजार।
उमंगों की बारिशे और मौसम की बहार।
लो आ गया होली का त्यौहार॥

मैं करुँगा दोस्तों अपनी गली इन्तजार।
तुम लोग आना लेके रंगों की फ़ुहार।
तुम सब रंग देना मेरा अंग सजीला।
चाहे भले कहता रहूँ मैं हूँ विमार।
लो आ गया होली का त्यौहार॥

जो आ नहीं सकते मेरे गली एक बार।
उनको मुबारक है अभी से यह रंग-त्यौहार।
बहुत याद आ रहे वो सरहदों के पहरेदार।
हम मना रहे त्यौहार वो झेल रहे दुश्मन की ललकार।
लो आ गया होली का त्यौहार॥

साथियों आवो कुछ याद उन्हें भी कर ले।
सिर झुका कर एक पल नमन उन्हें भी कर ले।
उनकी सहादत से मन की अपनी झोली भर ले।
फिर खेलेगें जमकर होली मारेगे रंग-अबीर की फुहार।
लो आ गया होली का त्यौहार॥

आओ खेलेगें फ़िर से होली हुल्हड़ में दोस्तों।
रंग रहेगा पिचकारी या फिर कुल्हड़ में दोस्तों।
लेकिन करेंगे सबको तरबतर मोहब्बत के रंगों में।
जिनको महसूस होता है घुटने टेक दिया होली का प्यार।
लो आ गया होली का त्यौहार, लो आ गया होली का त्यौहार॥

संक्षिप्त महाभारत

                                                          चित्र - गूगल से साभार



वो सभा सजी लाजवाब थी।

खेल खेलने की कड़ी ही खराब थी।
उस खेल में गलत करने की पहले से ही प्लान थी।
कौरवों को जीताना मामा शकुनि की शान थी।
हुआ भी कुछ ऐसा ही वो पाण्डव-हार के पल भी महान थे।
लेकिन द्रोपदी को खेल में दाव पर लगाना शर्म की बात थी।
द्रोपदी को बीच सभा में खींच लाना दुर्योधन के अभिमान की विसात थी।
फिर चीर-हरन करने का आदेश देना ही दिक्कत की बात थी।
द्रोपदी का सहायता माँगना नारी अलाप की मानो किताब थी।
अर्जुन-भीम प्रतिज्ञा महाभारत की सबसे बड़ी चित्कार थी।
चीर-हरण के दौरान श्री कृष्ण को बुलाना आत्मसम्मान की चिघाड़ थी।
चीर-हरण बचाना भगवान श्री कृष्ण के इज्जत की बात थी।
चीर-हरण और खेल खेलना ही महाभारत की शुरुआत थी।
महाभारत में अधर्मियों का विनाश करना भी अनिवार थी।
शायद कोई अब बचा नहीं जिसे महाभारत का कुछ पता ना हो।
मेरे सीमित सोच-विचार से सब कृष्ण की ही चाल थी।
अधर्म पर धर्म की हो विजय सभी देवताओं की माँग थी।
मेरे द्वारा लिखी गयी बातें बस महाभारत की सार थी।
यह सब लिखी बातें महाभारत की संक्षिप्त बयान थी।

मेरे जीवन की आश तुम्हीं

                                                                 चित्र - गूगल से साभार  


मेरे जीवन की आश तुम्हीं हो,

हो मेरे जीवन अरदास तुम्ही।
तुम हो मेरे जीवन की प्यास,
तुम रहती मुँख के हर उबास।
मेरी साँसों की हो तुम स्पन्दन,
लगती हो एक बाग स्वच्छन्दन।
मेरी आत्मकथा में तुमकों,
सर्वप्रथम है शत-शत वन्दन।
चन्द्र-किरण तुम काली रात की,
यह जीवन जुगुनू सोया है।
प्रिये! तुम हो सूरज कि प्रथम किरन,
तुमसे होता है मेरा जीवन रोशन।
रेगिस्तान की मरुभूमि मैं,
उसकी तुम शीतल सरिता हो।
मानो या ना मानो तुम,
तुम हो मेरी अनमोल धरोहर।
तुम आ जाओ मेरे जीवन में,
बनकर छोटी झील-सरोवर।
प्रिये! तुम्हीं हो मेरी हस्ती,
इस जीवन की तुम हो दौलत।
बस याद तुम्हारी चलती उर में,
जब भी मिलती मुझको फुरसत।

गरीबी और मर्यादा

                                                             चित्र - गूगल से साभार


क्या बयाँ करू उस गरीब की गरीबी,
जिसने पास ना देखी कभी अमीरी।
कभी लाले पड़ जाते है जिसको पाने दाने को,
कभी रात को सो जाता तरस जाता है खाने को।

उसके भी कुछ सपने पलते है आँखों में,
कुछ अरमानों की जिज्ञासा जिगर में होती है।
फिरता रहता है हरदम चट्टी,चौराहा गलियों में,
हर समय कुछ पाने कि आशा उर में होती है।

आज घुमता रहता है कुछ खाने की आश में,
मिलती है गालियाँ ही उसको हर उबास में।
क्या फितरत है इस जमाने की उसके प्रति,
मैं पुछता हूँ? मैं पुछता हूँ आज सबसे !

क्या उसका गरीब होना ही पाप ही है?
जब ढूढ़ता है काम गरीबी में मजदूर का।
काम मिले या ना मिले आरोप लग जाता है झूठ का,
कुछ लोग उसको डराते है तेवर दिखा अपना रंगरूट का।

आज उसके घर में ना अन्न-दाना है,
मारा-मारा फिर रहा खाने को दाना-दाना है।
मुझे लगता नहीं उसका इस नगर में ठिकाना है,
हर सम्भव आज उसका मजाक बनाता जमाना है।

गरीब है तो उसके गरीबी की भी कुछ मर्यादा है,
इस नगर में जिसका गरीबी में ना कोई सहारा है।
जिस मर्यादा में बँधा ना वो कुछ कर पाता ना कह पाता,
बेबस लाचार बस घुँट-घुँट के द्म भर कर ही रह जाता।

वही गरीब जब तोड. कर बोलेगा अपनी सारी मर्यादा,
तब देखना दुनियाँ में गुजेगा सारा मीडीया जमाना।
जिसका आज चुप्पी साधना ही एक बेहतर तराना है,
"अतुल" की लेखनी की कुछ मर्यादा और इतना बयाँना है।

समझ आये तो समझ लेना क्या तुम्हारी मर्यादा है।
गरीब हूँ तो क्या गरीबी में जीना हक सिर्फ हमारा है?
देखना हो मर्यादा तो खुला इस गरीब के घर का दरवाजा है,
आके देखना गरीब होकर कैसे खुशियाँ लुटाता है॥

गणतन्त्र दिवस

                                                                  चित्र - गूगल से साभार


इस जलती समाँ को कोई बुझा नहीं सकता।
हमको अपनी राह से कोई हटा नहीं सकता॥
बढ़ रहे है हम प्रगति की ओर निज साहस लिये।
हमारी शक्ति को कोई अब मिटा नहीं सकता॥
सत्य पथ पर हम सर्वदा यूँ ही बढ़ते जायेगें।
आयेगा वह दिन विपक्षी हमसे मिलते जायेगे॥
हम धरा पर दिप्ति होगे चाँद-तारों की तरह।
है अटल विश्वास मुझमें लक्ष्य तक पहूँचेगें हम॥
और वैभवगान अपना विश्व में देखेगें हम॥
फिर कला-कौशल और साहित्य का होगा विकाश।
एक स्वर से वन्दना जननी की जब बोलेगें हम॥
आवों इस गणतन्त्र दिवस पर प्रण करें हम सभी।
स्वतन्त्र भारत को फिर एक नया आयाम देगें॥
प्रहरी हमारे देश के अब चैन से रह सकेगें।
विश्व शान्ति का एक बार फिर नया संदेश देगें॥
 इस जलती समाँ को कोई बुझा नहीं सकता।
हमको अपनी राह से कोई हटा नहीं सकता॥

हिन्दी साहित्य और मैं : लेख

                                आज विश्व की सबसे कठिन भाषाओं में हिन्दी का दूसरा स्थान है प्रथम पर भी भारत की हि भाषा संस्कृत है जो भारतीय संस्कृति को अपने आप में समाहित किये हुये है। मेरा मानना है कि जब कोई भी भाषा या साहित्य अपने अन्दर रग-रग में बसती हो तो वह उतना ही आसान लगती है जितना ना समझ आने वालों को कठिन। कुछ ऐसा ही मेरा और हिन्दी साहित्य का नाता है। हिन्दी साहित्य का मैं इस समय छात्र तो नहीं हूँ, फिर भी हिन्दी साहित्य मेरे रग-रग में है।
                                 "अपनी भूमि से प्यार है, अपनी भाषा से प्यार है।
                                   हिन्दी बिना सोचूँ कुछ भी, सब कुछ निराधार है॥"
                                 हिन्दी भाषा से मेरा इतना ज्यादा लगाव है कि मैं उसे शब्दों से परिभाषित नहीं कर सकता। जब भी खुश के पल होते, मस्ती के पलों में, किसी भी प्रकार के उत्साह, आनन्दित करने वालों क्षणों में अगर कोई सबसे ज्यादा सूकून देता है तो वह हिन्दी साहित्य है। ऐसे क्षणों में हिन्दी साहित्य की कुछ पक्तियाँ जेहन में आती और उस माहौल को और भी ज्यादा सुहाना बना देती।
                                  "कितनी मर्यादित है यह करती हमें आनन्दित।
                                    संयमी रखती है सर्वदा हमको इसमें इसका हि उपकार है॥"
                             जब भी मेरा मन अशान्त/क्लान्त या भी अवशादपूर्ण होता है तब भी उससे उबारने के लिये नये जोश के साथ उन अवशादों से बाहर निकलने के लिये प्रेरित करती रहती है हिन्दी साहित्य की कुछ पंक्तियाँ। जब भी मैं थोड़ा परेशान सा होता हूँ तो बस उन से उबरने के लिये हिन्दी साहित्य का सहारा लेता हूँ और उन पलों को ही हिन्दी काव्य या गद्य का रुप दे देता। अगर हिन्दी साहित्य को देखा जाय तो हिन्दी साहित्य में सब कुछ भरा है। किसी का प्रेम, किसी का वियोग, किसी का सुख, किसी का दु:ख, किसी का करूण, किसी का क्रन्दन तो किसी का रुद्न और किसी का करूण विलाप सारे पल मौजुद है इस साहित्य। सारे पलों को अपने आप में समाहित करने का तो गुण इस साहित्य में है ही साथ ही साथ इस साहित्य का भाषा प्रेम भी अलग ही दिखता है। अगर हिन्दी में उर्दू भाषा का शब्द प्रयोग करे तो उर्दू जैसी, फारसी का प्रयोग करे तो फारसी जैसी प्रतित होती है।
                                    "प्रेम निवेदन करे और वियोगी कि व्यथा वर्णना।
                                      हर तरह के शब्दों का इस साहित्य में भरमार है॥
                                      एक-एक अक्षर सुभाषित पुष्प कि भाँति लगे।
                                      लगता इसके बिना साहित्य वाटिका श्रृंगार रहित है॥
                         जब भी मैनें हिन्दी साहित्य और खुद को देखता हूँ तो मुझे प्रतीत होता है कि हिन्दी साहित्य एक ऐसा साहित्य है जिसमें कुछ अस्तित्व अपनापन का झलकता है, जिसमें हम अपने भावों को बड़ी आसानी से व्यक्त कर सकते है। हिन्दी साहित्य के अलावा भी और साहित्य है, जिनकी मैं अवहेलना या गलत नहीं ठहरा सकता क्युकिं साहित्य और धर्म मेरी समझ से एक जैसे है। जिनसे हमारा लगाव या जुड़ाव गहरा/अधिक होगा वह हमारे लिये तो बेहतर है लेकिन ये जरूरी नहीं कि सबके लिये बेहतर हो। ये अपनी -अपनी सोच पर निर्भर करता है कि कौन कितना बेहतर है। हमारे लिये तो सब बेहतर है किसी को मैं ओछा नहीं कह सकता। मेरा लगाव हिन्दी साहित्य के प्रति ज्यादा है इसलिये मेरे लिये बेहतर है, ये जरूरी नहिं कि आप के लिये भी हो। दूसरे शब्दों में कहूँ तो जिसका जिससे ज्यादा लगाव होता है वह ही दुनियाँ में सबसे बेहतर है उससे बेहतर कुछ प्रतीत/प्रदर्शित ही नहीं हो पायेगा और ना आप देख पायेंगें।
                                       "गर्व है हमें व्यक्तित्व पर अपने असीम।
                                         हूँ मैं हिन्दी भाषी यह मेरे अस्तित्व कि पुकार॥"
                      अगर हम किसी साहित्य की बात करें और प्रश्न करें कि "साहित्य क्या है?" मेरी छोटी और सीमित सोच के अनुसार एक मात्र विचार-विनिमय का साधन है। जिससे जुड़ कर हम अपने विचारों को एक-दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करते है और सामने वाले के पास उस साहित्य कि समझ है तब तो ठीक है नहीं तो फिर एकअन्जान सी वस्तु/विशेष। 
                                        "भाषा होती है केवल विचार विनिमय का साधन।
                                          ना कोई है पांडित्य प्रदर्शन ना कोई है व्यापार॥
                          वैसे हम भारतवासियों को जिस प्रकार अपने संस्कृति पर गर्व है, ठीक वैसे ही अपने हिन्दी साहित्य और संस्कृत भाषा पर गर्व होना चाहिये कि दुनियाँ कि सबसे कठिन भाषा अपने भारत की दी हुयी है जिसमें हिन्दी साहित्य से हिन्दी हमें बहूत अच्छे से आती है। हमें अपने भारतवासी होने और अपनी हिन्दी भाषा पर गर्व है।