ऋतु बसन्त अब महक रही है


 
                                 चित्र - गूगल से साभार

ऋतु बसन्त अब महक रही है,
सारी बगिया भी चहक रही है,
कोयल मैना और गौरैया भी,
डाली-डाली फूदक रही  है।
काले कागा अब सोच रहे,
अब क्रुर चोंच से नोच रहे,
धुन्ध कुहासा सा छट रहा,
प्रकृति का रूप भी निखर रहा,
फागुन का रंग अब बिखर रहा,
अब स्नेह सुधा प्रकृति बरसायेगी,
श्यामलता धरती की खुशहाली ला रही,
हर पल खुशियों की नदी बह रही है,
सुर्ख आँखों में भी झिलमिलाते चलों,
दिल की लहरें अब यह कह रही है,
मौत है आखिरी मंजिल मनुष्य की,
मंजर दिखा यह जिन्दगी कह रही है॥