साज जिन्दगी का


                                                                           चित्र - गूगल से साभार
           




फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?
कभी लगती जिन्दगी परीकथा है,
तो कभी लगती तितली की व्यथा है,
मानों हो बादलों की उमड़ती उमंग सी,
तो कभी लगती कटी पतंग सी जिन्दगी,
लगत खुली हवाओं की है स्वछन्दता,
तो कभी लगती है कैद सी जिन्दगी,
मानो बहती हुई नदी है  जिन्दगी,
तो कभी लगती है मौन सी जिन्दगी,
सपनों कि अब अमावश रात हो गयी,
अब उन रातों में ही खो गयी जिन्दगी,
जो खो गयी उसे लाऊँ तो अब लाऊँ कैसे,
सोचता हूँ तुझे आजमाऊँ हरपल हर घड़ी, 
पर तुझे अब आजमाऊँ तो आजमाऊँ कैसे,
फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?

कभी लगता की प्यार है जिन्दगी,
तो कभी लगती हाथों की जहान है जिन्दगी,
कभी लगा की पा लिया है जिन्दगी,
तो कभी लगती खोयी-खोयी सी जिन्दगी,
कभी दोस्तों की दोस्ती है जिन्दगी,
तो कभी अजनवी सी मिली है जिन्दगी,
कभी माँ का अमॄत साथ है जिन्दगी,
तो कभी पिता के हाथ सी लगी जिन्दगी,
जब मन किया तब साथ चली जिन्दगी,
तो कभी पुष्प सा बिखर गयी जिन्दगी,
जो खो चली अब राह में है जिन्दगी,
ऐ साथी अब उसे लाऊँ तो आऊँ कैसे?
सोचता हूँ तुझे सजाऊँ हर पल हर घड़ी,
पर तुझे अब सजाऊँ तो सजाऊँ कैसे?
फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?

कभी तपन पाप की है जिन्दगी,
तो कभी डँसी साप सी है जिन्दगी,
कभी लगती तुफान सी है जिन्दगी,
तो कभी कोयल के गान सी है जिन्दगी,
कभी लगती मन-मीत सी है जिन्दगी,
तो कभी जग-प्रीत सी है जिन्दगी,
ये आस्था है अपने ही विश्वास की,
है मेरे मन के आशाओं के साथ की,
कभी बचपन के खेल सी है जिन्दगी,
तो कभी प्रियतमा के मेल सी है जिन्दगी,
समझ ना पाया आज तलक दोस्तों,
किस बात पर रहती है खफा जिन्दगी,
रूठकर ना जाने कहा चली गयी जिन्दगी,
ऐ साथी अब उसे लाऊँ तो आऊँ कैसे?
सोचता हूँ तुझे मनाऊँ हर पल हर घड़ी,
पर तुझे अब मनाऊँ तो मनाऊँ कैसे?
फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?




कभी चुड़ियों की खनक है जिन्दगी,
तो कभी शीशे सी चटक गयी जिन्दगी,
कभी तमस तो कभी रौशनी सी जिन्दगी,
कभी ख्यालों में भटक गयी जिन्दगी,
कभी भँवर सी वाचाल है जिन्दगी,
तो कभी साहिल सी खामोश जिन्दगी,
कभी आँखों में हँसीं है जिन्दगी,
तो कभी शाम सी उदासीन है जिन्दगी,
ना कभी मुझे समझ सकी है जिन्दगी,
ना कभी मैं समझ सका हूँ जिन्दगी,
कभी नरक की यातना है जिन्दगी,
तो कभी स्वर्ग की ख्वाब है जिन्दगी,
जैसी है वैसी अजीज है जिन्दगी,
ऐ साथी अब उसे लाऊँ तो आऊँ कैसे?
सोचता हूँ गले लगाऊँ हर पल हर घड़ी,
पर तुझे गले लगाऊँ तो लगाऊँ कैसे?
फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?