तैर के दरिया पार किया

                                                          चित्र - गूगल से साभार

तैर के दरिया पार किया था,
मैं डूब गया किनारों पर,
बाजारों में मैं बिक न पाया,
लिखता रहा दिवारों पर,
चादर डाले बैठ गया मैं,
अपने ही गुनाहों पर,
शस्त्र उठा कर जिसने जीता,
युध्द लड़ा गुमानों पर,
तमगा उनको ही हासिल,
नाम था जिनका नारों पर,
जब जब लोगों ने पुछा,
भाव तुम्हारा कितना है,
ठेकेदार सब बोल पड़े,
यह जीता है उधारों पर,
यह बात हमारे घर की थी,
पर ना जाने कैसी हवा चली,
गुमराह अब हो चला हूँ मैं,
अपने मंजिल की राहों पर,
फिर भी "अतुल" का चर्चा है,
गली - गली चौबारों पर,
तैर के दरिया पार किया था,
डूब गया किनारों पर॥