दोस्त

                                                              चित्र - गूगल से साभार

कुछ साथी मेरे काम के थे, कुछ साथी बस नाम के थे,
कैसे बताऊँ दोस्ती की दास्ताँ, जैसे थे वैसे सही वे थे,
अपने अपने जगह सब सही, पर वे मेरे विश्वास के थे,
जो नाम के थे उन्होनें मेरा विश्वास तोड़ा,
जो काम के थे उनको याद करना मैनें छोड़ा,
उन्होने भी दे दिया मुझे अपनी वफादारी का परिचय,
ना उनको मैनें याद किया ना उन्होनें कोशिश की,
कुछ दिन बिते कुछ महीने कुछ साल गुजर गये,
बिन दोस्तों के कुछ दिन हम अकेले ही रह गये,
एक दिन अचानक मुझे लगा मैं ही था गलत कहीं,
सोच कर मन  क्रौंध कर बोला अब कुछ किया जाय,
आखिर कब तलक अकेले बिन दोस्तों के रहा जाय,
अब दोस्तों से अलग रहने की सच्चाई बतानी पड़ेगी,
कुछ को बस सुनानी तो कुछ को विश्वास दिलानी पड़ेगी,
जब सच बताया तो कुछ ने बिना विरोध सच मान लिया,
कुछ ने सुनकर अनसुना तो कुछ ने झुठा करार दिया,
स्वीकार करने वालों ने अटूट दोस्ती की कसम खिला दिया,
अस्वीकार करने वालों ने जीते जी मिट्टी में मिला दिया,
आज भी सबको याद कर अकेला हूँ अकेला रह जाता हूँ,
उन सब को याद कर यादों के पन्ने सजाता रह जाता हूँ,
दोस्त सब के सब कल भी थे आज भी है आगे भी रहेगें,
कुछ तो साथ चलेंगे पर कुछ साथियों के साथ बिछड़ेगें,
कुछ साथ रहकर साथ होने का ढाढस पल-पल देते रहेगे,
कुछ यादों में "अतुल" तुम्हारी आँखों को नम करते रहेगे॥