चित्र - गूगल से साभार
आज गगन छोड़ कर वर्षा धरा पर आयी,
ना भायी उसे ऊँचाई चुभ रही है तन्हाई,
फिजाओं ने रंग बदला चमन से खबर आयी,
हवा ही ले उड़ी उस मौसम की अगड़ायी,
गले मिलकर कोपलों से रो रही शबनम,
किरन जब उसे चुमी तब वो मुस्कायी,
जीवन का हर रंग मिलता यहाँ हर दिल,
छटा फिर दिखी जो आशा ने है बिखरायी,
नजर सबकी है पर जुदा सबकी कहानी,
रब ने आज उसी रचना की तस्वीर दिखायी,
है सभी दौड़ के घोड़े मंजिल से अन्जान,
जहाँ से थे चले कुदरत फिर वही लायी,
भीगीं, सहमी, गुमसुम खड़ी वो कोने में,
जीवन ने चुमा तब कली मुस्काकर शर्मायी,
चलो मान लो "अतुल" जमाना अतुल्य नहीं,
मगर ये हकीकत है करनी इसमें रैन बसायी॥
आज गगन छोड़ कर वर्षा धरा पर आयी,
ना भायी उसे ऊँचाई चुभ रही है तन्हाई,
फिजाओं ने रंग बदला चमन से खबर आयी,
हवा ही ले उड़ी उस मौसम की अगड़ायी,
गले मिलकर कोपलों से रो रही शबनम,
किरन जब उसे चुमी तब वो मुस्कायी,
जीवन का हर रंग मिलता यहाँ हर दिल,
छटा फिर दिखी जो आशा ने है बिखरायी,
नजर सबकी है पर जुदा सबकी कहानी,
रब ने आज उसी रचना की तस्वीर दिखायी,
है सभी दौड़ के घोड़े मंजिल से अन्जान,
जहाँ से थे चले कुदरत फिर वही लायी,
भीगीं, सहमी, गुमसुम खड़ी वो कोने में,
जीवन ने चुमा तब कली मुस्काकर शर्मायी,
चलो मान लो "अतुल" जमाना अतुल्य नहीं,
मगर ये हकीकत है करनी इसमें रैन बसायी॥
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