वर्षा की बूदों पर

                                                    चित्र - गूगल से साभार


मैं वर्षा की बूदों पर धुन बनाता रहा,
उसी धुन को गाता गुनगुनाता रहा,
न बादल न दरिया न ही ठण्डी हवा,
बेमकसद ही जीवन राह चलता रहा,
प्यार, जुदाई, नफरत, दोस्ती, दुश्मनी,
इन्हीं सीढ़ियों पर चढ़ता उतरता रहा,
मैं कायल हो गया किसी के सरगोशी का,
फिर आज उनकी जिन्दगी से दूर जा रहा,
दोस्तों मुझे अपने साथ ले चलों तो बेहतर,
क्युकि ख्याल किसी का पल-पल आ रहा,
कोई आगे बढ़कर गमगीन परदा गिराओ,
आज सूरज की रोशनी से भी मै डर रहा,
अब ना रही मौज-मस्ती ना वो शरारत,
आजाद परिन्दे का खुले पर बाँध रहा,
सुना है दिल लगाने के है कुछ वसूल,
उनमें से एक तो मैं आजमाता रहा,
"अतुल" अपने अस्तित्व पर कर भरोसा,
अब यह ढाढस पल-पल बधाता रहा॥