चल पड़ी नदी

                                                                 चित्र - गूगल से साभार

चल पड़ी नदी पायल छनकाते हुये,
अपने दुपट्टे को हवा में उड़ाते हुये,
किसके नगर जा रही है ये नदी,
किनारों की आँखें भिगाते हुये,
ना जाने उसे क्या याद आ गया,
घटा भी रो पड़ी खिलकिलाते हुये,
छुआ होंठ से जब पहली दफा,
नदी बह चली थी छलछालाते हुये,
ढलकते हुये हाथ से एक तरफ,
बढ़ चली थी वो सकपकाते हुये,
लग रही थी मोम जैसी पिघलती,
चल दी गोदी में ममता सुलाते हुये,
मेरे साँझ की लालिमा धुप की,
कह दो जाये घुंघुरू बजाते हुये,
"अतुल" के सराफत की नाजुकी,
रूह में बस गयी कसमसाते हुये॥

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