भूकम्प त्रासदी

  
                                              चित्र - गूगल से साभार

कैसा था ये सिलसिला,
मैं तो अचानक हिल गया,
इतने में ही फोन पर,
समाचार भी मिल गया,
भूकम्प का था ये कहर,
नेपाल-भारत हिल गया,
कम्पन्न की इस लहर में,
बहुत कुछ धरा से मिल गया,
देख कर यह जलजला,
दिल मेरा दहल गया,
हताहत नहीं है कोई,
सुनकर मन मेरा बहल गया,
हजारों-हजार मर गये है 
हजारों हो गये है बेघर, 
ऐसा अब जानकर,
दिल मेरा पिघल गया,
कैसा था ये सिलसिला,
मैं तो अचानक हिल गया॥

घड़ी-घड़ी से कह रही

                                चित्र - गूगल से साभार


घड़ी-घड़ी से कह रही कब तलक चलूँ तेरे साथ,
थक कर तु बेहाल हुआ फिर भी हूँ मै तेरे साथ,

चाँद ने भी देख लिया है जो छिपे थे तेरे घाव,
कोई अकेला पथिक नहीं जिसे ना हो चमन का चाव 

बहता दरिया बहता रहता रोक सकी ना जिसे दिवार,
जायेगी सब तोड़कर समन्दर तलक गंगा की धार,

मन से अब बँधती जा रही ये मन की तीखी झंकार,
जितने कसते जा रहे हम निश्कंठित वीणा के तार,

सभी घुड़दौड़ में शामिल जो है मंजिल से अन्जान,
पहुँच रहे अन्त में वही जहाँ से चले थे सब नादान,

सोने का पिजड़ा बना कर वो डाले थे जिसमे जान,
फूक-फूक कर चलने से बेहतर भूली सहज उड़ान,

गहनता के इस शहर में रखो अपने सरल व्यवहार,
जग जीवन में खोजो हर पल खुशियाँ अपरम्पार,

महक नहीं पुष्प बनने का करते रहो अथक प्रयास,
प्राकृतिक उपवन को "अतुल" बनाओ अपना आवास॥

साज जिन्दगी का


                                                                           चित्र - गूगल से साभार
           




फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?
कभी लगती जिन्दगी परीकथा है,
तो कभी लगती तितली की व्यथा है,
मानों हो बादलों की उमड़ती उमंग सी,
तो कभी लगती कटी पतंग सी जिन्दगी,
लगत खुली हवाओं की है स्वछन्दता,
तो कभी लगती है कैद सी जिन्दगी,
मानो बहती हुई नदी है  जिन्दगी,
तो कभी लगती है मौन सी जिन्दगी,
सपनों कि अब अमावश रात हो गयी,
अब उन रातों में ही खो गयी जिन्दगी,
जो खो गयी उसे लाऊँ तो अब लाऊँ कैसे,
सोचता हूँ तुझे आजमाऊँ हरपल हर घड़ी, 
पर तुझे अब आजमाऊँ तो आजमाऊँ कैसे,
फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?

कभी लगता की प्यार है जिन्दगी,
तो कभी लगती हाथों की जहान है जिन्दगी,
कभी लगा की पा लिया है जिन्दगी,
तो कभी लगती खोयी-खोयी सी जिन्दगी,
कभी दोस्तों की दोस्ती है जिन्दगी,
तो कभी अजनवी सी मिली है जिन्दगी,
कभी माँ का अमॄत साथ है जिन्दगी,
तो कभी पिता के हाथ सी लगी जिन्दगी,
जब मन किया तब साथ चली जिन्दगी,
तो कभी पुष्प सा बिखर गयी जिन्दगी,
जो खो चली अब राह में है जिन्दगी,
ऐ साथी अब उसे लाऊँ तो आऊँ कैसे?
सोचता हूँ तुझे सजाऊँ हर पल हर घड़ी,
पर तुझे अब सजाऊँ तो सजाऊँ कैसे?
फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?

कभी तपन पाप की है जिन्दगी,
तो कभी डँसी साप सी है जिन्दगी,
कभी लगती तुफान सी है जिन्दगी,
तो कभी कोयल के गान सी है जिन्दगी,
कभी लगती मन-मीत सी है जिन्दगी,
तो कभी जग-प्रीत सी है जिन्दगी,
ये आस्था है अपने ही विश्वास की,
है मेरे मन के आशाओं के साथ की,
कभी बचपन के खेल सी है जिन्दगी,
तो कभी प्रियतमा के मेल सी है जिन्दगी,
समझ ना पाया आज तलक दोस्तों,
किस बात पर रहती है खफा जिन्दगी,
रूठकर ना जाने कहा चली गयी जिन्दगी,
ऐ साथी अब उसे लाऊँ तो आऊँ कैसे?
सोचता हूँ तुझे मनाऊँ हर पल हर घड़ी,
पर तुझे अब मनाऊँ तो मनाऊँ कैसे?
फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?




कभी चुड़ियों की खनक है जिन्दगी,
तो कभी शीशे सी चटक गयी जिन्दगी,
कभी तमस तो कभी रौशनी सी जिन्दगी,
कभी ख्यालों में भटक गयी जिन्दगी,
कभी भँवर सी वाचाल है जिन्दगी,
तो कभी साहिल सी खामोश जिन्दगी,
कभी आँखों में हँसीं है जिन्दगी,
तो कभी शाम सी उदासीन है जिन्दगी,
ना कभी मुझे समझ सकी है जिन्दगी,
ना कभी मैं समझ सका हूँ जिन्दगी,
कभी नरक की यातना है जिन्दगी,
तो कभी स्वर्ग की ख्वाब है जिन्दगी,
जैसी है वैसी अजीज है जिन्दगी,
ऐ साथी अब उसे लाऊँ तो आऊँ कैसे?
सोचता हूँ गले लगाऊँ हर पल हर घड़ी,
पर तुझे गले लगाऊँ तो लगाऊँ कैसे?
फिर से गुनगुनाऊँ तो गुनगुनाऊँ कैसे,
जो खो गया है साज जिन्दगी का,
उसे फिर से लाऊँ तो लाऊँ कैसे?

बचपन

                                                                चित्र - गूगल से साभार

 वो घर का आंगन,
वो माँ का चुल्हा,
वो किलकारी हमारी,
वो पह्ली रोटी,
और हमारी एक ही जिद,
मेरी सारी मेरी सारी,
फिर माँ का गुस्सा,
पिता जी का आना,
हम सबका चुप हो जाना,
वो लड़ना झगड़ना,
वो शिकायतें लगाना,
वो हँसना हँसाना,
वो रोना रुलाना,
वो बात-बात में निकलती गाली,
लगती कल की बात निराली॥




वो बचपन,
वो स्कूल,
वो बचपन के साथी,
खेल-कूद में शेर-वो-हाथी,
कक्षा में सिर चकराना,
इम्तिहान से घबराना,
वो आम की डाली,
गेहूँ की बाली,
लगती कल की बात निराली॥




मोहल्ले का नुक्कड़,
आईस्क्रीम का ठेला,
वो गिल्ली वो डंडे,
वो कंचे वो गुटटे,
वो वेरी वो चूरन,
वो कुल्फी वो भुट्टे,
वो रातों के सपनें,
वो सपनों की रातें,
बनती हर बात सवाली,
लगती कल की बात निराली॥




वो दिवाली की रात,
पटाखों की घात,
वो होली का रंग,
दोस्तों का संग,
दशहरें की धूम,
टी.वी. पे शाका-लाका बूम-बूम,
वो भाई की उम्मीद,
वो बहन की आशा,
वो माँ की आशीष,
पिताजी की मौन भाषा,
फिर यारों का यकीन,
किसी की अभिलाषा,
संबन्धों में जीवन की परिभाषा,
वो रिश्तों की हरियाली,
लगती कल की बात निराली,




अब वो पीछे छूट गये,
लगता सब के सब रूठ गये,
चाहत के थे जो गुब्बारे,
क्षण भर में ही फूट गये,
चाँद सितारों की चाहत में,
नाजूक सपनें टूट गये,
उन सारें घायल सपनों में,
लगता जैसे साथ है कोई,
जैसे कल कि बात है कोई,
फिर अमावश की वही रात काली,
लगती कल की बात निराली॥

सुबह गुजारी शाम गुजारी

                                                                           चित्र - गूगल से साभार
सुबह गुजारी शाम गुजारी,
बरसो बरस गुजार दिये,
एक तमन्ना दिल में थी,
उसको भी उजाड़ दिये,
दिदार को तेरे तरस गये,
ना जाने कितने बरस गये,
उर ने लगायी फिर उम्मीद,
उसको भी तुम मार गये,
ना जाने कब मुलाकात होगी,
फिर से बीत यह बरस गये,
कल की है उम्मीद यकीनन,
कह कर मुबारक नव बरस गये॥

निराशा की नदी

                                                                    चित्र - गूगल से साभार




निराशा की नदी सर-सराती चल पड़ी,
सोच की कमजोर डोर तोड़कर चल पडी,
तोड़ कर बंदिशों को इस-कदर मचली हवा,
आँधी बन सारी हसरतों को ले चल पड़ी,
दिल के दरमियाँ जो सुर्ख दर्द के लम्हें थे,
आँखों की वर्षा उन्हें झर-झराती ले चल पड़ी,
फिर वही दिल, वही खुशी, वही पुरवी हवा,
पावन मकरन्द हर घर को बहा कर चल पड़ी,
फिर ह्रदय के तार मधुरता से है बज पड़े,
फिर जिन्दगी के बेसुरे श्वर बहाकर चल पड़ी,
नये हौसलों से नयी मुस्कान के अंकूर खुले,
ह्रदय की बालऋतु पतझड़ बनाकर चल पड़ी,
समय की वादियों में अतुल्य मन है "अतुल"
धुप-कुहरे के सजे मंजर बहा कर चल पड़ी॥

बेवसी : भोजपूरी में

                                                                  चित्र - गूगल से साभार


लाख रोकी निगाह चल जाता,
का करीं मन मचल जाता,
राह में बिछलहर अऊर काई बा,
गोड़ रह-रह के फिसल जाता,
रुप के आँच मन के लगते ही,
साँस लहकत और मन पिघल जाता,
के तरे गीत गायी जिनिगियाँ के बबुआ,
हर घड़ी त लय बदल जाता,
केतना समझाई अपना मनवा के,
हर दम एकरो बर्ताव बदल जाता,
कुछ अलग मुकाम पर पहुँचल सोचली,
लेकिन आज कुछ कयल ना जाता॥

मंजिल चुना पर सपनों में

                                                           चित्र - गूगल से साभार




मंजिल तो चुना पर सपनों में कहा दम था,
रास्तों पर बढ़ा कदम पर हौसला ही कम था,
जब गिरा रास्तों पर लोगों को इसका गम था,
आँख से पुछा हाल तो आँख का इसारा भी नम था,
छोड़ आशियाना कर्मपथ पर निकलना यादगार था,
यादों की नदी में बाढ़ जैसा लहराता पानी श्रृंगार था,
अपनी सीमित सोच से वादियाँ खिलाता संसार था,
सिर पर आजमाईसों की जिन्दगी का कश्ती सवार था,
करके बहूत जुर्रत जो सजा घोंसला वो ही विश्राम था,
खुशी दिलाने वालों की सूची में अपनों का योगदान था,
अब हमारी वही खुशी छिनने में वक्त का बड़ा हाथ था,
ऐ दोस्त! तु हर वक्त किस वक्त की बात करता है,
वक्त से पुछा वक्त तो वक्त भी वक्त का ही भक्त था,
जब पुछा मंजिल से ही मंजिल पाने का आसान हुनर.
तो उसके उत्तर में आजाद परिन्दों का नाम भी कम था,
कल तलक जिसे मंजिल पाने की महक का इन्तजार था,
उसकी तीखीं प्यास की जुबाँ ने जो चखा वो जहर था,
दिल को दिल की कश्ती घिरा दिखता आस-पास था,
ऐसी बहारों के मध्य आह भरता भी आसमान था,
बिछ रहे पुष्पों में मौसम का "अतुल" ही शिकार था॥

वर्षा की बूदों पर

                                                    चित्र - गूगल से साभार


मैं वर्षा की बूदों पर धुन बनाता रहा,
उसी धुन को गाता गुनगुनाता रहा,
न बादल न दरिया न ही ठण्डी हवा,
बेमकसद ही जीवन राह चलता रहा,
प्यार, जुदाई, नफरत, दोस्ती, दुश्मनी,
इन्हीं सीढ़ियों पर चढ़ता उतरता रहा,
मैं कायल हो गया किसी के सरगोशी का,
फिर आज उनकी जिन्दगी से दूर जा रहा,
दोस्तों मुझे अपने साथ ले चलों तो बेहतर,
क्युकि ख्याल किसी का पल-पल आ रहा,
कोई आगे बढ़कर गमगीन परदा गिराओ,
आज सूरज की रोशनी से भी मै डर रहा,
अब ना रही मौज-मस्ती ना वो शरारत,
आजाद परिन्दे का खुले पर बाँध रहा,
सुना है दिल लगाने के है कुछ वसूल,
उनमें से एक तो मैं आजमाता रहा,
"अतुल" अपने अस्तित्व पर कर भरोसा,
अब यह ढाढस पल-पल बधाता रहा॥ 

लोग वादों इरादों की बात करते है

                                                          चित्र - गूगल से साभार

लोग वादों इरादों की बात करते है,
फिर क्युँ वो पल भर में मुकरते है,
जो लड़ जाते मुस्किलों से रणबाकुरें,
उन्ही के सितारें नभ में चमकते है,
जो अभिमान से चल दिये जमाने में,
अन्ततः वो  कर्मपथ पर बिखरते है,
जो डरते नहीं कयामत के कयामत से,
अब वो ही अलग इतिहास लिखते है,
कुछ लोगों ने छोड़ रखी है अपनी यादें,
आज उनके हौसलों के सच अखरते है,
जिससे सीखा था चलना सम्भल कर,
आज हम उनकी ही यादों में मरते हैं,
सुना है टूट जाते है  दिल परिन्दों के,
जब जब उनके हौसलें बिखरते है,
अक्सर किसान ही मायुस होता है,
जब बिन मौसम बादल बरसते है,
चार दिन की ही मिली है जिन्दगी,
फिर क्युँ ये लोग इतना सँवरते है,
"अतुल" रख अपने अतुल्य हौसलें,
चल अब कुछ फिर अलग करते है॥

दोस्त

                                                              चित्र - गूगल से साभार

कुछ साथी मेरे काम के थे, कुछ साथी बस नाम के थे,
कैसे बताऊँ दोस्ती की दास्ताँ, जैसे थे वैसे सही वे थे,
अपने अपने जगह सब सही, पर वे मेरे विश्वास के थे,
जो नाम के थे उन्होनें मेरा विश्वास तोड़ा,
जो काम के थे उनको याद करना मैनें छोड़ा,
उन्होने भी दे दिया मुझे अपनी वफादारी का परिचय,
ना उनको मैनें याद किया ना उन्होनें कोशिश की,
कुछ दिन बिते कुछ महीने कुछ साल गुजर गये,
बिन दोस्तों के कुछ दिन हम अकेले ही रह गये,
एक दिन अचानक मुझे लगा मैं ही था गलत कहीं,
सोच कर मन  क्रौंध कर बोला अब कुछ किया जाय,
आखिर कब तलक अकेले बिन दोस्तों के रहा जाय,
अब दोस्तों से अलग रहने की सच्चाई बतानी पड़ेगी,
कुछ को बस सुनानी तो कुछ को विश्वास दिलानी पड़ेगी,
जब सच बताया तो कुछ ने बिना विरोध सच मान लिया,
कुछ ने सुनकर अनसुना तो कुछ ने झुठा करार दिया,
स्वीकार करने वालों ने अटूट दोस्ती की कसम खिला दिया,
अस्वीकार करने वालों ने जीते जी मिट्टी में मिला दिया,
आज भी सबको याद कर अकेला हूँ अकेला रह जाता हूँ,
उन सब को याद कर यादों के पन्ने सजाता रह जाता हूँ,
दोस्त सब के सब कल भी थे आज भी है आगे भी रहेगें,
कुछ तो साथ चलेंगे पर कुछ साथियों के साथ बिछड़ेगें,
कुछ साथ रहकर साथ होने का ढाढस पल-पल देते रहेगे,
कुछ यादों में "अतुल" तुम्हारी आँखों को नम करते रहेगे॥

दुनिया के झुठे लोगों को

                                                         चित्र - गूगल से साभार

दुनिया के झुठे लोगों को बड़े हुनर आते है,
पर सच्चे लोगों को ये आरोप मार देगा,
पत्थर बहूत ही अच्छे है मेरी निगाहों में,
लोगों की छोटी बातों को हद से गुजार देगा,
किताबें पढ़ पढ़कर इंसान किरदार भूल गया,
लेकिन घर का दुश्मन कभी दिखाई ना देगा,
लाख कह लो यारो सच कभी सुनायी ना देगा,
अब तू ही बता तू मुझे कैसे रिहायी देगा,
जब खुद में नहीं रहा अब तेरा अस्तित्व,
तो फिर तुझे और कैसा अच्छा दिखायी देगा,
कद जो बढ़ाते गये अपना किरदार मारकर,
फिर मत सोच कोई रिस्तों की रजाई देगा,
बदनसीब है वो लोग जो सुरक्षा नहीं करते,
पेड़ भी छाँव और फल देकर पत्थर खिला देगा,
बिखरना छोड़ कर पेड़ो की तरह लड़ना सीख,
कल हवा, धूप, पानी और धूल निखार देगा,
समेट ले "अतुल" अँगुलियों से चादर की तरह,
वरना लोग तेरे साथ रह तुझे पथ पर गिरा देगा॥ 

ऋतु बसन्त अब महक रही है


 
                                 चित्र - गूगल से साभार

ऋतु बसन्त अब महक रही है,
सारी बगिया भी चहक रही है,
कोयल मैना और गौरैया भी,
डाली-डाली फूदक रही  है।
काले कागा अब सोच रहे,
अब क्रुर चोंच से नोच रहे,
धुन्ध कुहासा सा छट रहा,
प्रकृति का रूप भी निखर रहा,
फागुन का रंग अब बिखर रहा,
अब स्नेह सुधा प्रकृति बरसायेगी,
श्यामलता धरती की खुशहाली ला रही,
हर पल खुशियों की नदी बह रही है,
सुर्ख आँखों में भी झिलमिलाते चलों,
दिल की लहरें अब यह कह रही है,
मौत है आखिरी मंजिल मनुष्य की,
मंजर दिखा यह जिन्दगी कह रही है॥

तैर के दरिया पार किया

                                                          चित्र - गूगल से साभार

तैर के दरिया पार किया था,
मैं डूब गया किनारों पर,
बाजारों में मैं बिक न पाया,
लिखता रहा दिवारों पर,
चादर डाले बैठ गया मैं,
अपने ही गुनाहों पर,
शस्त्र उठा कर जिसने जीता,
युध्द लड़ा गुमानों पर,
तमगा उनको ही हासिल,
नाम था जिनका नारों पर,
जब जब लोगों ने पुछा,
भाव तुम्हारा कितना है,
ठेकेदार सब बोल पड़े,
यह जीता है उधारों पर,
यह बात हमारे घर की थी,
पर ना जाने कैसी हवा चली,
गुमराह अब हो चला हूँ मैं,
अपने मंजिल की राहों पर,
फिर भी "अतुल" का चर्चा है,
गली - गली चौबारों पर,
तैर के दरिया पार किया था,
डूब गया किनारों पर॥

गुमसुम हवाओं को जगाये रखो

                                                                   चित्र - गूगल से साभार

गुमसुम हवाओं को जगाये रखों साथियों,
भर कर जुनून आँधियों सा बनाये रखों,
नदी सुख कर जो बन गयी रेत साथियों,
उसमें गर्म अहसास के पानी बहाये रखो,
रूबरू हो जाये सच्ची हकीकत दोस्तों,
दर्पण से धुल बार-बार हटावो साथियों
करते रहो आजाद सबको उदासियों से,
जज्बात के पंक्षी फिर से उड़ाओ साथियों,
भरों फिर चमक इन अधबुझी सी आँख में,
फिर नजरों को नजरों में घुमाओ साथियों,
क्युँ बह रहीं हैं हवाओं के साथ तकदीरें,
फिर से इन्हें जोश में चलाओ साथियों,
एक बार फिर नाच उठे अल्फाज की रुहें,
उफनी ही लहरों के साज बजाओ साथियों,
विश्वास को मिल जाये सहारा दिल का,
"अतुल" फ़िर से उत्साह बढ़ाओ साथियों॥

फिर नर्म घासों ने अंकूर उगा लिये

                                                             चित्र - गूगल से साभार

फिर नर्म घासों ने अंकूर उगा दिये,
होठों पर धुप ने नगमें सजा लिये,
सूरज ने मुस्कुराकर क्या चुम लिया,
जीवन की पत्तियों ने आँसू सुखा लिये,
उदासी छोड़ कर नजर देखती कल को,
आशा की तितलियों ने पर उगा लिये,
भीगी पगडंडियों के द्वार क्या खुले,
कदमों ने चलने के नये रास्ते बना लिये,
किरने भी लौटती है शुभकलस चुमकर,
मंदिरों की घंटियों ने असीस गा लिये,
माता की ममता ने फिर दुलारा चुमकर,
सपनों में आशीष का आँचल चुरा लिये.
फिर सज गयी भोर सुनहरे लिवास में,
विद्यालय की राह पर कदम बढ़ा लिये,
कुछ दिल में नयी लहरें उठा के चल दिये,
तो कुछ जोश में कुछ के होश उड़ा लिये,
माना जिन्दगी ने हमेशा दुख दर्द ही दिये,
"अतुल" ने उम्मीद के दीपक जला लिये॥

गगन छोड़ वर्षा

                                                             चित्र - गूगल से साभार

आज गगन छोड़ कर वर्षा धरा पर आयी,
ना भायी उसे ऊँचाई चुभ रही है तन्हाई,
फिजाओं ने रंग बदला चमन से खबर आयी,
हवा ही ले उड़ी उस मौसम की अगड़ायी,
गले मिलकर कोपलों से रो रही शबनम,
किरन जब उसे चुमी तब वो मुस्कायी,
जीवन का हर रंग मिलता यहाँ हर दिल,
छटा फिर दिखी जो आशा ने है बिखरायी,
नजर सबकी है पर जुदा सबकी कहानी,
रब ने आज उसी रचना की तस्वीर दिखायी,
है सभी दौड़ के घोड़े मंजिल से अन्जान,
जहाँ से थे चले कुदरत फिर वही लायी,
भीगीं, सहमी, गुमसुम खड़ी वो कोने में,
जीवन ने  चुमा तब कली मुस्काकर शर्मायी,
 चलो मान लो "अतुल" जमाना अतुल्य नहीं,
मगर ये हकीकत है करनी इसमें रैन बसायी॥

चल पड़ी नदी

                                                                 चित्र - गूगल से साभार

चल पड़ी नदी पायल छनकाते हुये,
अपने दुपट्टे को हवा में उड़ाते हुये,
किसके नगर जा रही है ये नदी,
किनारों की आँखें भिगाते हुये,
ना जाने उसे क्या याद आ गया,
घटा भी रो पड़ी खिलकिलाते हुये,
छुआ होंठ से जब पहली दफा,
नदी बह चली थी छलछालाते हुये,
ढलकते हुये हाथ से एक तरफ,
बढ़ चली थी वो सकपकाते हुये,
लग रही थी मोम जैसी पिघलती,
चल दी गोदी में ममता सुलाते हुये,
मेरे साँझ की लालिमा धुप की,
कह दो जाये घुंघुरू बजाते हुये,
"अतुल" के सराफत की नाजुकी,
रूह में बस गयी कसमसाते हुये॥

आशियाना एक नया बुनने चला


                                                                    चित्र - गूगल से साभार

आशियाना एक नया बुनने चला हूँ मैं,
तिनका-तिनका आस का चुनने लगा मैं,
मोह और फर्ज से बाँधकर अपनी जिन्दगीं,
एक तसल्ली भरा सफर बनने लगा हूँ मैं,
किस-किसने बिखेरे है काँटे हमरी राह में,
इनसे कभी लड़ने तो कभी बचने लगा हूँ मैं,
ताजगी कुछ, हँसी कुछ, चहल कुछ प्यार की,
हादसे, लाचारियाँ अश्क भी बनने लगा हू मैं,
लड़खड़ाता देख किसी ने पुछ लिया "है कौन?",
हँसकर बोला कुछ नहीं रास्ता भटक गया हूँ मैं,
आज फिर मौसम हँसी है झुण्ड में सब चल रहे,
फिर ना जाने क्या सोच घर को मुड़ गया हूँ मैं,
क्या "अतुल" क्या अतल क्या अतुल्य है फिजा,
साथ सबका है मिला फिर भी सोचने लगा हूँ मैं॥

कुछ इस कदर मर्ज है

                                                                  चित्र - गूगल से साभार

आज कुछ इस कदर मर्ज है फिजायें,
आज कुछ झिझकी-झिझकी है दुआयें,
आज सिर भी टकराया है पत्थर से,
और लौट कर चली आयी है सदायें,
मुँह छुपा कर किसी के बाहों में,
आज फिर सिसक रही है वफायें,
ना जाने क्या सोच कर इस मन ने,
अनेकों पुष्प एक तस्वीर पर चढायें,
बिजलियाँ देख ली इस गगन की,
और देख ली इस जहाँ की घटायें,
रात भर आज आ रही हँसी यादें,
जिससे नीदों में भी सब मुस्कायें,
ना जाने किसकी सजा मुझे मिली,
और हम उन गुनाहों को सजायें,
जो महक थी "अतुल" के मन की,
आज उसे हवा भी जहाँ में उड़ायें॥