असहिषुण भारत

कुछ लोगों के जुबाँ में कैंची की धार आने लगी,
अब भारतीयता भी उनके बच्चों को खाने लगी।

मेरी समझ से लगता है सोहरत रुतबा रौंनकें,
जो देश से मिली थी उन पर रौंब दिखाने लगी।

पुछ लेते एक बार जाकर देश के पहरेदारों से भी,
क्या उनको देश में असहिष्णुता नजर आने लगी।

वो खड़े रहते है सीमाओं पर रात-दिन आठों पहर,
तुम जैसों से आँच उनकी वीरता पर आने लगी।

गर तुम्हें नजर आ रही थी सच में असहिष्णुता,
तो निकल जाते उस जगह पर जो रास आने लगी।

शब्दों से मत बाटों यार देश को लाल और हरें में,
तुम जैसों की वजह से भारत माँ गालियाँ खाने लगी।

लगाया था दिल में जो अपने देश का तिरंगा "अतुल",
उसे देशद्रोही औलादें काला बता अँगुलियाँ उठाने लगी॥
                                             ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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