कुछ दोस्त और यादें (नवकविता)

कल शाम के वक्त,
जब तुम सब मिले थे ना,
तब तुम सबको थोड़ा थोड़ा,
चुरा लिया था,
अरे हाँ सच में,
सच में चुरा लिया था,
किसी से किसी की खुश्बू,
किसी से किसी की हँसी,
किसी से किसी का अक्श,
किसी से किसी का नक्श,
जब एक तरफ जा कर,
चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे ना,
उस हँसीं पल को भी मैं,
कैद कर लिया था,
रात को घर आकर जब मैं,
ये सारा सामान चोरी का,
निकाल रहा था ना,
तब बन्द आँखों से देखा,
पलकों के पल्लों पर,
कोई छुप-छुप कर,
द्स्तक दे रहा था,
जब आँखों की पलकें,
खोल कर देखा तो,
रात का सिपाही(चाँद),
अपनी वर्दी के सितारें टाँके(रात),
ख्वाबों की हथकड़ी लिये,
बड़ी शालीनता से,
मन्द मन्द मुस्कुराते हुये,
आवाज लगा रहा था,
क्या तुम सब बताओगे?
चाँद के पुलिस स्टेशन में,
तुम सबने मिल कर,
कोई रपट दर्ज करायी थी?
अरे बताओ ना..?
करायी थी ना.....?
        ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"