गीत (अनुभवहीन प्रथम गीत)

तेरी दर पर खड़ा होकर,
मैं फरियाद करता हूँ।
झलक पाने की खातिर ,
मै तुझको याद करता हूँ।१

बन्द दरवाजा खोल दे प्रिये,
बाहर मैं पुकार करता हूँ।
तरस आता नहीं तुमको या,
वक्त मैं बर्बाद करता हूँ।२

रहूँ मैं हर पल तेरे साथ,
यह मैं करार करता हूँ।
ईश्वर मैं समझ तुमको,
भक्त बन प्यार करता हूँ।३

अरे भूल जा बीती बातों को,
उनका अवसान करता हूँ।
नयी चहल नयी पहल की,
अब मैं बात करता हूँ।४

सम्भल कर खुद मैं दर्द का,
अब बंटाधार करता हूँ।
नयी मंजिल नयी उँचाई की.
फिर तलाश करता हूँ।५

तेरी गलतियों को फिर से,
मैं दरकिनार करता हूँ।
अभी भी बैठ दरवाजे पर,
तेरा इन्तजार करता हूँ।६

दिल का हर मौसम प्रिये,
तुम्हारे नाम करता हूँ।
अपने प्यार की खातिर,
अपने को निलाम करता हूँ।७

आज बैठकर तेरे दर पर,
तुझे ही याद करता हूँ।
हुँ सिकन्दर मैं यहाँ का फिर भी,
निवेदन बार-बार करता हूँ।८

जिन्दगी हो जिन्दगी बन,
तुमसे प्यार करता हूँ।
देखने को तेरा चेहरा,
आग्रह बार बार करता हूँ।९

बसा कर तस्वीर दिल में,
तेरा दिदार करता हूँ।
ईश्वर मैं समझ तुमको,
भक्त बन प्यार करता हूँ।१०  
             ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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