तुम्हारी कमी अब कभी खलेगी नहीं,
तुम आ भी गये तो हमारी जमेगी नहीं।
सुख गयी है जो दोस्ती की नेह बगिया,
कितना भी डालो पानी अब खिलेगी नहीं।
दिल के रिस्तों का जो करते रहे दिखावा,
सच कहूँ तो ईश्क की सीढ़ी टिकेगी नहीं।
कितना भी रख लो अब तुम पाक इरादे,
दुबारा हमारी दोस्ती तुम्हें मिलेगी नहीं।
तब क्या सोच कर तुम गये थे यहाँ से,
हमारी बर्बादियाँ कभी भी थमेगी नहीं?
गलत तो हर बार तुम वही पर रहे दोस्त,
जो सोचा विकास रुपी गाड़ी चलेगी नहीं।
अब क्या कहने लौट कर चले आये ’अतुल’,
क्या अब सच्चाई कभी ये आँखे कहेगीं नही॥