मन का राजा

अपने मन का राजा बनना,
अपने को ही अच्छा लगता है।
पर जो सबके मन को भाये,
वो सबको ही अच्छा लगता है।
झुके नैन कम्पित होठों से,
लज्जा संवर्धन अच्छा लगता है।
आवेशित कर ले जो जीवन को,
वो ही आवेश अच्छा लगता है।
जब प्यार से कोई समझाये,
तब सब कुछ अच्छा लगता है।
एक ह्रदय को सकल ह्रदय का,
पावन प्रतिविम्ब अच्छा लगता है।
जब खोये पथिक संग नाचे खुशियाँ,
तब जीवन अभिनन्दन अच्छा लगता है।
जीवन का यह मंदिर हुल्लड़-उल्लास,
अब इन नयनों को अच्छा लगता है॥
                         ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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