बिना मतलब कभी घुमा मत करो,
कभी कभार अपने घर भी रहा करो।
जो किताबें है शहर में सच्ची गज़ल की,
उसे चुपके से छुप-छुपकर पढ़ा करो।
मुझे तो अब अखबार सी लगती है,
प्यार-मोहब्बत की सारी कहानियाँ।
जो किसी ने कहा नहीं वो सुना करो,
जो सुना नहीं वो सबसे कहा करो।
जो छुपकर चल रहे है पर्दे की आड़ में,
उनकी भी सच्चाई अब बेपर्दा करो।
वो बन सँवर कर गर चल रहे है ’अतुल’
तो फिर तुम भी उनके संग चला करो॥
©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"
©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"
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