खयालात

दिल दिमाग से उसका ख्याल क्यूँ नहीं जाता,
चेहरे से उसके नकाब उतर क्यूँ नहीं जाता।

उसने मेरे ख्यालों में बना डाला है जो आशिय़ाँ,
पलकों से टूट कर अब बिखर क्यूँ नहीं जाता।

कही गर दिख आये तो मेरी उठती नही नजर,
तन्हाईयों से मेरे उसका असर क्यूँ नहीं जाता।

अक्सर मेरे एहसासों को छू कर गुजर जाता है,
गर किस्मत है मेरी तो सँवर क्यूँ नहीं जाता।

आज उसके हर अल्फाज दर्ज है मेरे जेहन में,
गर्दिश में लिखता हूँ तो छप क्यूँ नहीं जाता।

अगर मलाल है उसे अपने किये हुये गुनाहों का,
तो फिर झूठी गवाही से मुकर क्यूँ नहीं जाता।

सैलाब जो उमड़ कर उठा है आज मेरे सीने में,
पूछता हूँ आज ते तूफान थम क्यूँ नहीं जाता।

घनघोर अन्धेरों से आज करके बगावत "अतुल",
दिपक की तरह ही आज निखर क्यूँ नहीं जाता॥
                               ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"