कहने को था सिर्फ नाच नंगा हो गया,
एक बार फिर मेरे शहर में दंगा हो गया।
जो छुप-छुप कर करता रहा सियासत,
समय फिरा तो बेनकाब बन्दा हो गया।
कुछ पानी पी कर तो कुछ ऐसे ही सो गये,
आज शहर का चौपट सारा धन्धा हो गया।
कुछ लुटाते तो कुछ कमाते रहे गालियाँ,
सिर्फ कहने को था व्यापार मन्दा हो गया।
लोग एक-दुसरे को काटते और बाटते रहे,
सच में यह सारा खेल अब गन्दा हो गया।
सब एक दुसरे पर ही करते रहे खुला वार,
जुल्म देखकर लगा जीवन रन्दा हो गया।
सारे सितम ढोता और लिखता रहा "अतुल"
पर अब तादाद में कुचल कर ठण्डा हो गया॥
©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"
एक बार फिर मेरे शहर में दंगा हो गया।
जो छुप-छुप कर करता रहा सियासत,
समय फिरा तो बेनकाब बन्दा हो गया।
कुछ पानी पी कर तो कुछ ऐसे ही सो गये,
आज शहर का चौपट सारा धन्धा हो गया।
कुछ लुटाते तो कुछ कमाते रहे गालियाँ,
सिर्फ कहने को था व्यापार मन्दा हो गया।
लोग एक-दुसरे को काटते और बाटते रहे,
सच में यह सारा खेल अब गन्दा हो गया।
सब एक दुसरे पर ही करते रहे खुला वार,
जुल्म देखकर लगा जीवन रन्दा हो गया।
सारे सितम ढोता और लिखता रहा "अतुल"
पर अब तादाद में कुचल कर ठण्डा हो गया॥
©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"