खुदा ने सौंप दी मुझको कई दुनिया हिसाबों में,
सुकूँ मिलता नहीं बस आज दौलत की किताबों में।
फँसे हम ही रहे अब तक गली में आप की देखो,
खुदा ने रख दिया नक्शा जमीं का माहताबों में।
तलाशी हैं सभी लेते मगर हासिल नहीं कुछ भी,
मिले हैं सब सबब मुझको सियासत के नकाबों में।
हजारों ख्वाहिशें मेरी दफन हैं आज सीने में,
नजर के ही नजारे हैं हया के इन हिजाबों में।
कली अब तोड़ मत लेना समझकर फूल जज्बाती,
बिखरती है सिमटती है बनी काँटा गुलाबों में।।
✍©अतुल कुमार यादव
सुकूँ मिलता नहीं बस आज दौलत की किताबों में।
फँसे हम ही रहे अब तक गली में आप की देखो,
खुदा ने रख दिया नक्शा जमीं का माहताबों में।
तलाशी हैं सभी लेते मगर हासिल नहीं कुछ भी,
मिले हैं सब सबब मुझको सियासत के नकाबों में।
हजारों ख्वाहिशें मेरी दफन हैं आज सीने में,
नजर के ही नजारे हैं हया के इन हिजाबों में।
कली अब तोड़ मत लेना समझकर फूल जज्बाती,
बिखरती है सिमटती है बनी काँटा गुलाबों में।।
✍©अतुल कुमार यादव
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