सुनाओ आज दिल की तुम तुम्हारा हाल कैसा है?
तुम्हारे लोग कैसे हैं कहो ये साल कैसा है?
नहीं जीना हमें मरना कभी अब इश्क में फँसकर,
नहीं मैं जानता कुछ भी बता दो ख्याल कैसा है?
घरौंदा हो भले छोटा निवाला तुम ग्रहण करना,
मगर मत पूछ लेना ये कि चावल दाल कैसा है?
हमें बस ख्वाब मिलता है अभी दिन के उजालों में,
निगाहों में हकीकत का भरा जंजाल कैसा है?
अदालत की बिकी झूठी गवाही दिल कुरेदीं हैं,
शहर की तब हवाओं में मचा भूचाल कैसा है?
बहर मालूम होती तो मुकम्मल हर नजर होती,
ग़ज़ल की भाष में सुन लो अभी ये लाल कैसा है?
✍© अतुल कुमार यादव
तुम्हारे लोग कैसे हैं कहो ये साल कैसा है?
नहीं जीना हमें मरना कभी अब इश्क में फँसकर,
नहीं मैं जानता कुछ भी बता दो ख्याल कैसा है?
घरौंदा हो भले छोटा निवाला तुम ग्रहण करना,
मगर मत पूछ लेना ये कि चावल दाल कैसा है?
हमें बस ख्वाब मिलता है अभी दिन के उजालों में,
निगाहों में हकीकत का भरा जंजाल कैसा है?
अदालत की बिकी झूठी गवाही दिल कुरेदीं हैं,
शहर की तब हवाओं में मचा भूचाल कैसा है?
बहर मालूम होती तो मुकम्मल हर नजर होती,
ग़ज़ल की भाष में सुन लो अभी ये लाल कैसा है?
✍© अतुल कुमार यादव
No comments:
Post a Comment