ग़ज़ल : भोजपूरी

जिनिगिया के रस्ता बतावे के मन बा,
जिनिगिया के रस्ता दिखावे के मन बा।

केहूँ न संघें  ना केहूँ के संग बा,
जिनिगिया के संघी बनावे के मन बा।

सुख दुःख के पंक्षी उड़े लागल मन में,
जिनिगिया के पंक्षी उड़ावे के मन बा।

मिले लोर कबहूँ जो आँखी में अपना,
जिनिगिया के हर गम छुपावे के मन बा।

केहुये न आपन ना केहुये पराया,
जिनिगिया के दुश्मन बनावे के मन बा।

कबो गीत सोहर गावे ला मनवा... हो,
जिनिगिया के सरगम बजावे के मन बा।

दिलवा में नेहिया भरल भोजपूरी.. त,
जिनिगिया के "आखर" बनावे के मन बा॥
                             © अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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