लघु-कथा

आज बस के कोने में आखिरी सीट पर बैठा लोगों को चढ़ता उतरता देख रहा था। कुछ लोग बस में चढ़े टिकट लिये और सफर समाप्त होते ही उतर लिये। वही कुछ लोग चढ़े तो लोगों को खुद से जोड़ने लगे,राजनीति से लेकर देश काल की हजारों बातों का ज्ञान बाटने लगे। शेष बचे कुछ लोग बस में चढ़े तो टिकट लिये दो कदम इधर उधर हुए और दस मिनट के सफर में ही लोगों से लड़ने झगड़ने लगे। ऐसा देख कुछ लोग बीच बचाव में लग गये तो कुछ उकसावे में और कुछ लोग सब कुछ देखते सहते उदासीन बने रहे, जो स्वाभाविक भी है। शायद यही "बस" दुनिया है और सवारियाँ हम आप जैसे करोड़ों लोगों की जिन्दगी और लड़ना झगड़ना चार दिन की जिन्दगी के सुख दुख। अब निर्भर हम पर करता है कि हमें सुख दुख में विचलित होना है या एक सा बने रहना है।
                                                                                                                                                   ©अतुल कुमार यादव.

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