ग़ज़ल : कब तक आँखें

कब तक आँखें चार करोगी?
बोलो कब तक प्यार करोगी?

उल्टे सीधे लहजों से तुम,
कब तक आँखें खार करोगी?

प्यार नहीं है दिल से तुमको,
गलती तो हर बार करोगी?

नफरत लेकर अपने मन में,
हमसे कितना प्यार करोगी?

दिल से दिल ये पूछ रहा है,
कब तक ऐसे रार करोगी?

माना जीवन यह दरिया है,
डर के कब तक पार करोगी?

सच सच तुम इतना बतला दो,
मुझको कब स्वीकार करोगी?
                   ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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