गीत

जीवन की अन्तिम बेला में,
सोचा था बस गीत लिखूँगा।
बैठे-बैठे साथ सभी के,
सोचा था बस प्रीत लिखूँगा।

नहीं लिखा है गीत अभी तक,
नहीं लिखा है प्रीत अभी तक।
नहीं लिखूँगा मानव का मन,
नहीं लिखूँगा दानव का तन।
अभी निराशा के इस क्षण में,
नहीं कलम के भाव लिखूँगा।
नहीं लिखूँगा नहीं दिखूँगा,
नहीं दिखूँगा नहीं लिखूँगा।
काव्य जगत में जब आऊँगा,
नये सपन को तब लाऊँगा।
नई नई फिर रीत लिखूँगा,
नई नई फिर प्रीत लिखूँगा।
जीवन की अन्तिम बेला में,
सोचा था बस जीत लिखूँगा॥

नई दिशायें साथ न होगी,
भले किसी बात न होगी।
मालूम है मुझको बस इतना,
पहले जैसी रात न होगी।
पहले जैसे रात न होगी,
पहले जैसे बात न होगी।
सहज सरल मुझको रहना है,
नहीं किसी से कुछ कहना है।
पर लगता अंतिम बेला में,
नहीं लिखूँगा नहीं दिखूँगा।
नहीं लिखा तो नहीं लिखूँगा,
नहीं दिखा तो नहीं दिखूँगा।
जीवन के अन्तिम बेला में,
नहीं दिखूँगा नहीं लिखूँगा॥
                    ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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