अश्क का छोटा कतरा

मैं अश्क का
एक छोटा सा
वो कतरा हूँ,
जिसे तुम
जब चाहो तब
बहा सकते हो,
जब चाहो तब
अपने लफ्जों में
अपने अल्फाजों में
अपनी भावनाओं में
मोतियों की तरह
पिरो सकते हो।
वैसे भी स्याह दर्द
की राहें
इतनी भी
आसान नहीं होती
कि तुम बस चलते जाओ
और तुम्हें तनिक भी
तकलीफ न हो।
तुम जब भी
मेरे बनाये रास्तों
चलोगे...
तो यादों का गीलापन
तुम्हें रोकेगा, टोकेगा
और अन्तत:
खुद में समेट लेगा।
तुम मुझे नजरों की राह
से गिरा तो रहे हो
पर क्या तुम
मुझे इन राहों पर चलकर
भूला पाओगे?
अगर भुला सकते हो
तो भूला देना,
और अपनी यादों की,
वादों की,
इरादों की दुनियाँ में
एक चिराग की तरह
रौशन होकर
अपने जिन्दगी की राहें
खुशियों से सजा लेना।
©अतुल कुमार यादव.

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