राजगुरू सुखदेव भगत को हरदम शीश नवाता हूँ।
भारत के कदमों में झुक कर मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाता हूँ।
आजाद लहू है आज देश का जिनके दम से,
उनको जिन्दा आज देश के रज कण में पाता हूँ।
जिनकी शहादत है जिन्दा अब तक देशी माटी में
वैसा ही मै वीर सपूत इस मिट्टी में उपजाता हूँ।
कलम ऋणी है देश ऋणी है अब तक जिनकी गाथाओं का,
नतमस्तक सम्मुख मैं उनके अक्सर खुद हो जाता हूँ।
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद अब गूँज उठे भारत वन में,
मेरा अन्तर्मन तो वन्दे मातरम् गाता औ दोहराता हूँ।
✍©अतुल कुमार यादव
भारत के कदमों में झुक कर मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाता हूँ।
आजाद लहू है आज देश का जिनके दम से,
उनको जिन्दा आज देश के रज कण में पाता हूँ।
जिनकी शहादत है जिन्दा अब तक देशी माटी में
वैसा ही मै वीर सपूत इस मिट्टी में उपजाता हूँ।
कलम ऋणी है देश ऋणी है अब तक जिनकी गाथाओं का,
नतमस्तक सम्मुख मैं उनके अक्सर खुद हो जाता हूँ।
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद अब गूँज उठे भारत वन में,
मेरा अन्तर्मन तो वन्दे मातरम् गाता औ दोहराता हूँ।
✍©अतुल कुमार यादव
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