जिन्दगी में खैरियत का

जिन्दगी में खैरियत का सिलसिला कुछ भी नहीं,
हम उसूलों पर चलें हैं सिरफिरा कुछ भी नहीं।

वक्त की पाबन्दियों में चल रहा मैं रात दिन,
दरबदर हूँ मैं भटकता माजरा कुछ भी नहीं।

हर घड़ी है याद रखनी बस बड़ों की बात को,
ज्ञान की इन वादियों का दायरा कुछ भी नहीं।

हर तरफ अंधेर है यह रौशनी को क्या पता?
इक जलाना दीप मुझको मशवरा कुछ भी नहीं।

हसरतों को तुम लिए दिल में उतरकर देख लो,
इन निगाहों का तेरे बिन आसरा कुछ भी नहीं।
                                   ©अतुल कुमार यादव.

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