ग़ज़ल : रात होती रही चाँद सोता रहा

रात होती रही चाँद सोता रहा,
ख्वाब की एक दुनिया सँजोता रहा।

हासिये पर चला औ छला हर घड़ी,
चाँद खुद ही दगाबाज होता रहा।

हौसलों की जो' बारिश हुयी रात थी,
मन निराशा लिये चाँद खोता रहा।

रागिनी में मधुर तान छेड़ों न अब,
रूप श्रृंगार का जुल्म ढोता रहा।

चाँदनी रात में बात ही बात में,
प्यार का फैसला रात होता रहा।

प्यार था ही नहीं ख्वाब ही ख्वाब था,
जिन्दगी की हकीकत पिरोता रहा।

साजिशों से फँसा रात की घात में,
हाल बेहाल किस्मत का' होता रहा।
                         ©अतुल कुमार यादव

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