आज लिखते लिखते इक ग़ज़ल

आज लिखते लिखते इक ग़ज़ल
क्यूँ नयन मेरे अब हो गये सजल।

आँसू पीड़ा दिल में तो था ही नहीं,
फिर क्यूँ? क्यूँ देख सभी गये दहल।

मेरे दिल की बस्ती तो विरान है अभी
तो बेहिजाब रहने लगा कौन इस-पल

यकीनन नींव जिसने रखीं थी ख्वाबों में,
अब वही कहे कैसी है आगे की पहल।

घर बनाने की बात तो सिर्फ बातों में थी,
दुआओं से देखो बना है ये कैसा महल।

जब हर लम्हा तेरे नाम किया 'अतुल'
तब जाकर मुकम्मल है शहर-ए-ग़ज़ल।
                               ©अतुल कुमार यादव

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