सरस्वती वन्दना

                                                               चित्र - गूगल से साभार

हे माँ वीणावादिनी ! कहाँ तुम वीणा बजा रही हो?
किस मंजुज्ञान से किस जग को लुभा रही हो?
किस भाव में मग्न हो रही हो पुस्तकधारिणी?
एक विनय हमारी तुम क्युँ ना सुन रही हो? 
हम अधीर बाल कब से विनती सुना रहे है,
चरनों में तुम्हारे अपने शीश नवाँ रहे है,
अज्ञानता हमारी शीघ्र दूर करो माँ,
जीवन हमारा सदबुध्द व प्रबुध्द करो माँ,
नवयुग की नूतन वाणी में नवगान भरो माँ,
नवल युग के मुरझे सुमनों में मुस्कान भरो माँ,
नयी उमंग में नयी तरंग का संचार करो माँ,
शत-शत दीप जलाने को "अतुल" का आह्वान करो माँ,
अपने अलौकिक कीर्ति-ज्योति का पुनः प्रसार करो माँ,
अखण्ड अलौकिक दिव्य भारत का पुनः निर्माण करो माँ,
तुम दिव्य हो तुम अलौकिक परम ब्रह्म की ज्ञाता हो,
तुम से बस इतनी ही विनती इसको तुम स्वीकार करो माँ,
जन-जन के जीवन में फिर से नव स्फूर्ति नव प्राण भरो माँ,


2 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 13 फरवरी2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

ATUL KUMAR YADAV said...

http://halchalwith5links.blogspot.in दिये गये लिंक पर अपनी कृति देखने में असमर्थ हूँ।