हाथ उठाता हूँ हर रोज

                                                                    चित्र- गूगल से साभार

हाथ उठाता हूँ हर रोज,
और दुआ माँगता हूँ।
आज उनके लिये खुशी,
और खुद के लिये सजा माँगता हूँ।
जो मेरा था कभी,
वही छीन लिया गया।
और आज फरिस्ते भी,
मेरी रजा माँगते है।
मेरे दरख्तों कि जो टहनियाँ थी,
अब वो भी सुख गयी।
क्युँ आज पत्ता भी हमसे,
हँसने को हवा माँगते है।
तमाम उम्र उसे ही चाहने का,
एक अनोखा वादा किया था।
आज वही है जो मुझसे,
प्यार की वफा माँगते है।
जो मुझसे कभी जुदा नहीं,
फिर क्युँ मुझसे जुदा माँगते है।
अब तो बस यही लगता है,
मौत भी सौदे कि चीज है।
इसीलिये वे सभी सौदागर,
मेरे मौत का सौदा चाहते है॥

No comments: