जब अक्सर तन्हाई में होता हूँ,
किसी अलग दुनियाँ में खोता हूँ।
हाँ, वो अलग दुनियाँ, जिसमें कोई नहीं,
ना साथी ना यारी, ना अपनी घरवारी।
सबसे अलग होती है दुनिया हमारी,
और उस दुनियाँ की दुनियादारी।
जिसमें यादे होती है जीवन के कुछ पलों की,
शायद वो पल जिन्होने मुझे रुलाया होता।
शायद वो पल जिन्होने मुझे दुलराया होता,
तो कुछ ने खामोशी का पाठ पढ़ाया होता।
बस उन यादगार पलों को सजाने के लिये।
मैनें कुछ शब्दों का समुह यादों से चुराया होता।
और उन शब्दों से पंक्ति-युग्म बनाया होता।
और वो पंक्ति-युग्म रचना का आकार बनाया होता॥
कभी-कभी मन जब बहका होता है।
तब बिना पंख का आजाद परिन्दा होता है।
निकल जाता है सैर करने कही दूर वादियों में।
और जब आता तो यादों से रिस्ता बनाये होता।
मन मेरा कभी-कभी कर लेता है बात हवाओं से।
ना चाहते हुये भी कर लेता है बात घटाओं से।
कभी-कभी तो पर्वत-पहाड. का चक्कर लगाये होता।
बड़ा नादान है! कभी कभी तो पंक्षियों का कलरव गुनगुनाया होता।
कभी नदी के बहाव तो कभी समन्दर की गहराई में समाये होता।
बस इन्ही यादों का सुन्दरता से पंक्ति बनाया होता।
बस इन भावों में "अतुल" को चारों ओर घुमाये होता।
जब यादों से बाहर निकलों तो बहारों का निधीवन सजाये होता।
जब अक्सर तन्हाई में होता हूँ,
किसी अलग दुनियाँ में खोता हूँ।
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