उलझ गया हूँ

                                                            चित्र - गुगल से साभार


उलझ गया हूँ ख्वाबों में, बस उनको ही है सुलझाना॥
टूटी हुयी शाखों में अब, है अब कुछ फूल खिलाना॥
मुझको तो अब याद आ रहा, मौसम वही पुराना।
तेरा मेरा संग चलना, गली के मोड. तक आना॥
मानता हूँ जज्बातों का, दुश्मन है यह जमाना॥
पर कहाँ पर्वतों के वश में, दरिया को रोक पाना॥
जिन्दगी आज भी है झांकती, जैसे यादों का तराना॥
उलझ गया हूँ ख्वाबों में, बस उनको ही है सुलझाना॥
हम तो अब खुद बेकखबर है, जब से हुआ दिल लगाना॥
तुने तो अपना चेहरा खोला, हमला हुआ एक कातिलाना॥
तू गुजरी मेरे बगलों से, और तेरा पायल छनकाना॥
फिर मुड.कर तेरा तकना, और मेरा सब कुछ लुटजाना॥
अब तो दिल कैद हुआ मेरा, दिल में बस तेरा ही नजराना॥
उलझ गया हूँ ख्वाबों में, बस उनको ही है सुलझाना॥
कब से भटक रहा हूँ मैं, जरा इतना तो बतलाना॥
अब तो इतना ही याद मुझे, वो तेरा धीरे से मुस्काना॥
क्युँ बतलाऊँ दुनियाँ को मैं, तेरा छोटी-छोटी बात पर लड़ जाना॥
हरदम तेरे साथ रहूँगा, बस इतना दिल को समझाना॥
अब क्या बतलाऊँ ओ यारा, जीवन है तेरे संग बिताना॥
उलझ गया हूँ ख्वाबों में, बस उनको ही है सुलझाना॥ 

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