जुवेनाईल जस्टिस : एक युवा अभिव्यक्ति

घर में ही गद्दार बहुत है घर में आग लगाने को,
राजनीति खड़ी पड़ी है उनको न्याय दिलाने को।

वहशी दरिन्दों को राजनीति ने इस कदर से पाला है,
डरते नहीं जो न्याय से इसको शर्मशार कर डाला है।
ना जाने कैसे रूप लिये वो आजाद फिजा में घुम रहे है,
डेढ़ सौ करोड़ की आबादी में गलत दहलीजें चुम रहे है।
न्याय की परिभाषा से वो तैयार है आग लगाने को,
राजनीति खड़ी पड़ी है उनको न्याय दिलाने को॥

वोट बैंक की खातिर नेता अन्याय को ही बाँट रहे है,
जाति धर्म कौम एकता में भारत को भी छाँट रहे है।
हम लगे हुये है देश की एकता और न्याय अपनाने में.
और राजनीति लगी हुयी है और आतंक पनपाने में।
अब न्यायिक परिभाषा बदलो रे सच से सच दिखाने को,
घर में ही गद्दार बहुत है घर में आग लगाने को॥

एक प्रश्न मैं पुछ रहा हुँ राजनीति के लालों से,
क्या उम्र मायने रखती है कौम में दहशत फैलाने को।
दरिन्दे तो खड़े पड़े है एक तरफ दहशतगर्दी मचाने को,
और तुम लगे हुये हो वोट बैंक और उनको आजाद कराने को।
घर में ही गद्दार बहुत है घर में आग लगाने को,
राजनीति खड़ी पड़ी है उनको न्याय दिलाने को।

बहूत हुआ यह प्यारवाद न्याय नहीं अपराधी बचाने को,
सच से सच का करो सामन फिजा की लाज बचाने को।
न्यायिक परिभाषा बदलो, है उम्र नही अपराध बताने को,
कुछ ऐसा करो की स्वप्न भारत हो अमन फिजा दिखाने को।
घर में ही गद्दार बहुत है घर में आग लगाने को,
राजनीति खड़ी न हो अब उनको न्याय दिलाने को।
राजनीति न अब खड़ी हो उनको न्याय दिलाने को,
गर खड़ी हो अब से तो रास्ता दिखाये बस तिहाड़ जाने को॥
                                                 ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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