ख्वाब : भोजपूरी

साथी जब आहट होखे तब ख्वाब देखीं,
जिनगी में सिमटल सारा जहान देखी।

सालो साल रंगल बा जिनगी के रंग में,
देखे के अब एह रंगन के मिशाल देखीं।
कुछ भुलल भटकल याद में फिर से,
अपना जिनगी के कुछ आसार देखीं।
एह किराया के जिनगीं में अब फिर,
दू पल अपना जिनगी के बितान देखीं।
जिनगी के कागज हमेशा कोरे रही,
असल जिनगीं के तनी पहचान देखीं।
जब आहट होखे तब ख्वाब देखीं,
जिनगी में सिमटल सारा जहान देखी॥

रिस्तन के तह में धूल जम गईल साथी,
अब रिस्ता के दाग धुल मिटाय देखीं।
असली नकली के लड़ाई त चलते रही,
सही गलत में अब अन्तर हजार देखीं।
"अतुल" धड़कते रहिहन वक्त लम्हा बन,
हर सांस में आपन नाम पहचान देखीं।
जब आहट होखे तब ख्वाब देखीं,
जिनगी में सिमटल सारा जहान देखी॥

खामोशी त गुनगुनईते रही सपना में,
तनी बहकत सातों सुर के तान देखीं।
महकत इरादा और ए तड़पते वादा के,
ख्वाहिश के बँधल पट्टी हटाय देखी। 
भले केहू के हुनर चोरी इरादा नेक होखे,
धोखा देबे के बा त धोखा तनी खाय देखी।
अगर जले के मन बा सूरज जश ए साथी,
त पहिले एगो त दिया खुदे जलाय देखी।
जब जब आहट होखे तब तब ख्वाब देखीं,
अपना जिनगी में सिमटल सारा जहान देखी॥

जे कुछ भी चलत रहेला मन के दरिया में,
हमरा भाषा में हरदम ओकर उबाल देखीं।
एह दुनियाँ में त सब कुछ छुपावल जाता,
देखे बा त सच्चाई के शीशा लगाय देखीं।
कहला और कईला में त बहूत फर्क होला,
पहिले दिल के उलझन त मिटाय देखीं।
विरासत में हमरा के कूछ मिलल नईखें,
आँसू गम नमीं से सँजल हमार जहा देखीं।
ए साथी जब आहट होखे तब ख्वाब देखीं,
अपना जिनगी में सिमटल सारा जहान देखी॥
                               ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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