लड़ी आँसुओं की..

जो लड़ी आँसुओं की दिल में दाखिल ना हुयी थी,
वो घड़ी आँसुओं के कातिलों को हासिल ना हुयी थी॥

मैं न जाना किस तरह से आँधियाँ वहाँ पर आ गयी थी,
दिल के दरिया में आज तो लहरें भी गोता खा गयी थी,
यादों की भँवर में एक धुँधली छवि फिर छा गयी थी,
मुड़ कर देखा दिल में अपने वो कहर बरपा गयी थी,
जो लड़ी आँसुओं की दिल में दाखिल ना हुयी थी,
वो घड़ी आँसुओं के कातिलों को हासिल ना हुयी थी॥

जिन आँखों में कभी हौसलें पर हौसलें ही पल रहे थे,
उस वक्त की दरिन्दगीं में उन्मादी दिये जल रहे थे,
नयी पीढ़ियों के बहादूर जब नये सपन ही गढ़ रहे थे,
तब उन आखों की अदावत कर हिमाकत सो गयी थी,
जो लड़ी आँसुओं की दिल में दाखिल ना हुयी थी,
वो घड़ी आँसुओं के कातिलों को हासिल ना हुयी थी॥

आँख से गिरते ही आँसू कुछ ना कुछ जब पुछते थे,
खुशियों के बौर भी तब दिल को ना ही रूचते थे,
बेसमय आकर ही मेरे दिल का पट खटखटा गयी थी,
यादों की अमराई काँट बन जिन्दगी में छा गयी थी,
जो लड़ी आँसुओं की दिल में दाखिल ना हुयी थी,
वो घड़ी आँसुओं के कातिलों को हासिल ना हुयी थी॥

वो धुँधली छवि फिर से काँटे पिरोकर ला रही थी, 
जो समय के इस चाल में जिन्दगीं उलझा रही थी,
जब सुख दुख की किरण होली दिवाली मना रही थी,
तब धीरे धीरे मेरी जिन्दगीं जहाँ को छोड़ जा रही थी,
जो लड़ी आँसुओं की दिल में दाखिल ना हुयी थी,
वो घड़ी आँसुओं के कातिलों को हासिल ना हुयी थी॥
                                        ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

No comments: