अलग दुविधा

दुविधा दुविधा सब दुविधा है,
अब किसकी मैं आवाज लिखुँ।

क्या आवाज लिखुँ उस बच्चे का,
जो सड़क पर जाकर लेटा है।
क्या विरह लिखुँ उन पत्तों का,
जो गिरा पड़ा है और सुखा है।
क्या उन गलियों की बात लिखुँ,
जो देह बेचकर अब खाता है।
क्या उस नेता का ध्येय लिखुँ,
जो स्वार्थसिध्द को जाता है।
सब ज्ञात तुझे आभास तुझे,
किस बात का अब मैं नाज लिखुँ।
दुविधा दुविधा सब दुविधा है,
अब किसकी मैं आवाज लिखुँ।

क्या कहानी लिखुँ उस बेटे की,
जो बाप के रिस्तों को ना समझे।
क्या व्यथा लिखुँ उस माता की,
जो अपना ही बच्चा खो बैठे।
क्या लिखुँ शब्द जिनसे मिलकर,
कई तरह के अब तक ग्रंथ लिखे।
क्या लिखुँ उस जीवन शैली को,
जो पहले डाकू फिर सन्त बने।
क्या लिखुँ उन जज्बातों को अब,
जो भारत माँ की रक्षा में अड़े।
दुविधा दुविधा सब दुविधा है,
अब किसकी मैं आवाज लिखुँ।
               ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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