सपनों में अभी जान बाकी

                                                              चित्र - गूगल से साभार



सपनों में अभी जान बाकी है।
हौसलों में अभी उड़ान बाकी है।
उम्मीदों का साथ तो अभी छुटा भी नहीं।
मंजिल तक पहुँचने का जूनून अभी टूटा भी नहीं।
फिर इतनी जल्दी कैसे हार मान लूँ ? 
हारने की तो आज तक मैनें सोचा नहीं।

अभी जीवन-समृध्दि की है सोच।
कदम निरंन्तर सफलता की ओर।
दॄढ़ इरादे दॄढ़ विश्वास दॄढ़ संकल्प।
मन में हरदम होते रहते ओत-प्रोत।
अभी बस कामयाबी की है सोच।

कामयाबी की डगर पर कामयाब होने का इरादा।
पूरा होगा एक दिन यह मेरी अभिलाषा।
सफल होने कि शायद यह सही परिभाषा।
और सफल होने कि यही सही परिभाषा॥

हे ईश्वर हे अल्ला हे दाता

                                                                  चित्र - गूगल से साभार



हे ईश्वर! हे अल्ला! हे दाता!
तुम ही हो मेरे भाग्य-विधाता।
तुम्हारी कृपा-दॄष्टि जब हम पर होती,
सारी दुनियाँ तब अपनी होती।
ना किसी से डर है होता,
ना किसी से भय है होता।
तुमको दुनियाँ कहती माटी-पाथर,
लेकिन तुम हो करुना के सागर।
जो किसी को रास ना आता,
वो तो बस तुमको है भाता।
क्या कहुँ तेरे व्याख्यान में,
मेरे तो कुछ समझ ना आता।
हे ईश्वर! हे अल्ला! हे दाता!
तुम ही हो मेरे भाग्य-विधाता।
तुम दीनों के सुखदाता हो,
तुम उनके भाग्य-विधाता हो।
तुम सृष्टि के हो निर्माता,
तुम आदि और अनन्त तुम्हीं हो।
जो तुमको समझ पाता है,
वो हि मोक्ष को है पाता।
हे ईश्वर! हे अल्ला! हे दाता!
तुम ही हो मेरे भाग्य-विधाता।
दूर करो सब दुख दर्द हमारे,
हे खुशियों के अमृतदाता।
सब कुछ तो प्रदत्त आपका,
क्या भेंट आपको करू मैं नाथ।
अपनी कृपा बनाये रखना हमपर,
हे दुनियाँ के विश्व-विज्ञाता।
हे ईश्वर! हे अल्ला! हे दाता!
तुम ही हो मेरे भाग्य-विधाता।

तन्हाई


जब अक्सर तन्हाई में होता हूँ,

किसी अलग दुनियाँ में खोता हूँ।

हाँ, वो अलग दुनियाँ, जिसमें कोई नहीं,

ना साथी ना यारी, ना अपनी घरवारी।
सबसे अलग होती है दुनिया हमारी,
और उस दुनियाँ की दुनियादारी।

जिसमें यादे होती है जीवन के कुछ पलों की,

शायद वो पल जिन्होने मुझे रुलाया होता।
शायद वो पल जिन्होने मुझे दुलराया होता,
तो कुछ ने खामोशी का पाठ पढ़ाया होता।

बस उन यादगार पलों को सजाने के लिये।

मैनें कुछ शब्दों का समुह यादों से चुराया होता।
और उन शब्दों से पंक्ति-युग्म बनाया होता।
और वो पंक्ति-युग्म रचना का आकार बनाया होता॥

कभी-कभी मन जब बहका होता है।

तब बिना पंख का आजाद परिन्दा होता है।
निकल जाता है सैर करने कही दूर वादियों में।
और जब आता तो यादों से रिस्ता बनाये होता।

मन मेरा कभी-कभी कर लेता है बात हवाओं से।

ना चाहते हुये भी कर लेता है बात घटाओं से।
कभी-कभी तो पर्वत-पहाड. का चक्कर लगाये होता।
बड़ा नादान है! कभी कभी तो पंक्षियों का कलरव गुनगुनाया होता।

कभी नदी के बहाव तो कभी समन्दर की गहराई में समाये होता।

बस इन्ही यादों का सुन्दरता से पंक्ति बनाया होता।
बस इन भावों में "अतुल" को चारों ओर  घुमाये होता।
जब यादों से बाहर निकलों तो बहारों का निधीवन सजाये होता। 

जब अक्सर तन्हाई में होता हूँ,

किसी अलग दुनियाँ में खोता हूँ।

दिल्ली

                                                              चित्र - गूगल से साभार


दिल्ली जब से नेताओं की जान हो गयी।

तब से यह महानगर बेईमानों की खान हो गयी।
क्या बयाँ करूँ मैं इसकी हकीकत।
कुछ कुरूपियों से यह शर्मशार हो गयी।
दिल्ली जब से नेताओं की जान हो गयी,
देश की राजधानी आज आदर्शवान हो गयी।
लेकिन सच्चाई देखों तो रईसों की बागान हो गयी।
गुण्डे मवालियों के लियेअब शान हो गयी।
दिल्ली जब से नेताओं की जान हो गयी।
तब से यह महानगर बेईमानों की खान हो गयी।
ऐतिहासिक धरोहरों से इतिहास के पन्नों का गान हो गयी।
देशवासियों के हर क्षेत्र से आने से सांस्कृतिक विशात हो गयी।
जब से यह महानगर नेताओं की जान हो गयी।
उनके गलत कर्मों से यह शर्मशार हो गयी।
विकास की खुदाई से यह कोयले कि खान हो गयी।
चल गयी दिल्ली पर आज "अतुल" की लेखनी।
जिससे आज दिल्ली कि बखान हो गयी।
आज फिर हिन्दी जगत में माला-माल हो गयी।
एक बार और राजधानी की बयान हो गयी।
दिल्ली जब से नेताओं की जान हो गयी।
तब से सच में प्यारी दिल्ली बदनाम हो गयी॥

पंक्षी की उड़ान

                                                                   चित्र - गूगल से साभार


उड़ जा पंक्षी नील गगन में,
उड़ता जा तु अपनी मगन में।
चार पंख लगे तेरे पंख में,
हौसला कम ना हो तेरे रंग में।
उड़ जा पंक्षी नील गगन में,
उड़ता जा तु अपनी मगन में।
मन का पंक्षी भी छुना चाहे,
सूरज की पहली ही किरन।
जैसे धरती भी मिलना चाहे,
आसमाँ तेरे संग में।
उड़ जा पंक्षी नील गगन में,
उड़ता जा तु अपनी मगन में।
तु तो उड़ता अम्बर पाने को,
मिलती है बस तुझे निचायी।
अब रमता जा तु अपनी रमण में,
ला एक नया जोश अपने जेहन में।
उड़ जा पंक्षी नील गगन में,
उड़ता जा तु अपनी मगन में।
मंजिल कठिन है राह है टेढ़ी,
तुझे ही करनी है अब सीधी।
उड़ कर अब चलते जाना है,
करनी है यात्रा पुरी एक पल में।
उड़ जा पंक्षी नील गगन में,
उड़ता जा तु अपनी मगन में।

हर तरफ मंजिल ही मंजिल


हर तरफ मंजिल ही मंजिल,

दिल्ली के गलियारों में।
कही छुप गया अस्तित्व हमारा,
सियासत के अधियारों में।
घिर गये है हम सभी अब,
चारों तरफ दिवारों में।
कोई खेवनहार बनों अब,
जान ला दो पतवारों में।
लड़ रहे है हम अपनों में,
कुछ रखा नहीं विचारों में।
एक सुरज उगा दो यारों,
कुछ शेष नहीं लश्कारों में।
अब आग-शोला बन चलना है,
चारों तरफ अंगारों में।
हर दिन अब फूल खिलेगा,
चारों तरफ बहारों में।
बनना है तो मिशाल बनों,
कुछ रखा नहीं हथियारों में।
एक दिप अब अलग बनेगें,
जैसे चाँद सितारों में।
हर तरफ मंजिल ही मंजिल,
दिल्ली के गलियारों में।
कही छुप गया अस्तित्व हमारा,
सियासत के अधियारों में।

मेरा जीवन

                                                               चित्र - गूगल से साभार


जीवन मेरा आग का दरिया है।
मुझे डूब के जाना है॥
उस पार तो मंजिल है।
इस पार ठिकाना है॥
जीवन मेरा आग का दरिया है।
मुझे डूब के जाना है॥
मतलब की ये दुनियाँ है।
मतलब का फसाना है॥
मतलब के है लोग यहाँ।
मतलब का ही नाता है॥
जीवन मेरा आग का दरिया है।
मुझे डूब के जाना है॥
ना कुछ खोने को है इसमें।
ना कुछ पाने की आशा है॥
जब तक है साँस मेरी।
कुछ कर के जाना है॥
जीवन मेरा आग का दरिया है,
मुझे डूब के जाना है।
इक आजाद परिन्दा हूँ।
एक दिन उड़ जाना है॥
हौसला जब तक है मुझमें।
बस जीते ही जाना है॥
जीवन मेरा आग का दरिया है।
मुझे डूब के जाना है॥

उलझ गया हूँ

                                                            चित्र - गुगल से साभार


उलझ गया हूँ ख्वाबों में, बस उनको ही है सुलझाना॥
टूटी हुयी शाखों में अब, है अब कुछ फूल खिलाना॥
मुझको तो अब याद आ रहा, मौसम वही पुराना।
तेरा मेरा संग चलना, गली के मोड. तक आना॥
मानता हूँ जज्बातों का, दुश्मन है यह जमाना॥
पर कहाँ पर्वतों के वश में, दरिया को रोक पाना॥
जिन्दगी आज भी है झांकती, जैसे यादों का तराना॥
उलझ गया हूँ ख्वाबों में, बस उनको ही है सुलझाना॥
हम तो अब खुद बेकखबर है, जब से हुआ दिल लगाना॥
तुने तो अपना चेहरा खोला, हमला हुआ एक कातिलाना॥
तू गुजरी मेरे बगलों से, और तेरा पायल छनकाना॥
फिर मुड.कर तेरा तकना, और मेरा सब कुछ लुटजाना॥
अब तो दिल कैद हुआ मेरा, दिल में बस तेरा ही नजराना॥
उलझ गया हूँ ख्वाबों में, बस उनको ही है सुलझाना॥
कब से भटक रहा हूँ मैं, जरा इतना तो बतलाना॥
अब तो इतना ही याद मुझे, वो तेरा धीरे से मुस्काना॥
क्युँ बतलाऊँ दुनियाँ को मैं, तेरा छोटी-छोटी बात पर लड़ जाना॥
हरदम तेरे साथ रहूँगा, बस इतना दिल को समझाना॥
अब क्या बतलाऊँ ओ यारा, जीवन है तेरे संग बिताना॥
उलझ गया हूँ ख्वाबों में, बस उनको ही है सुलझाना॥ 

सरस्वती वन्दना

                                                               चित्र - गूगल से साभार

हे माँ वीणावादिनी ! कहाँ तुम वीणा बजा रही हो?
किस मंजुज्ञान से किस जग को लुभा रही हो?
किस भाव में मग्न हो रही हो पुस्तकधारिणी?
एक विनय हमारी तुम क्युँ ना सुन रही हो? 
हम अधीर बाल कब से विनती सुना रहे है,
चरनों में तुम्हारे अपने शीश नवाँ रहे है,
अज्ञानता हमारी शीघ्र दूर करो माँ,
जीवन हमारा सदबुध्द व प्रबुध्द करो माँ,
नवयुग की नूतन वाणी में नवगान भरो माँ,
नवल युग के मुरझे सुमनों में मुस्कान भरो माँ,
नयी उमंग में नयी तरंग का संचार करो माँ,
शत-शत दीप जलाने को "अतुल" का आह्वान करो माँ,
अपने अलौकिक कीर्ति-ज्योति का पुनः प्रसार करो माँ,
अखण्ड अलौकिक दिव्य भारत का पुनः निर्माण करो माँ,
तुम दिव्य हो तुम अलौकिक परम ब्रह्म की ज्ञाता हो,
तुम से बस इतनी ही विनती इसको तुम स्वीकार करो माँ,
जन-जन के जीवन में फिर से नव स्फूर्ति नव प्राण भरो माँ,


मैं जिस शहर में रहता

    चित्र - गूगल से साभार

मैं जिस शहर में रहता हूँ,

उस शहर में मेरी दिवानी रहती है।
किस्सा है मेरे मोहल्ले का,
जिसमें एक कहानी रहती है।
हर पल दिल खोल कर जीती है,
मगर उसके दिल के अन्दर,
एक लड़की सयानी रहती है।
 घर तो बहुत बनाये है दिल के,
हमने अपनी मोहब्बत में।
बस एक नगरी दिल की,
वहाँ हमारी बसानी रहती है।
बहुत टकराये है हम लहरों से,
जालिम इश्क के समन्दर में।
मगर हमारे इश्क की गलियों में,
हवा भी तुफानी चलती है।
मैं आज खुली किताब हूँ।
ये मसला ही और है कि,
मोहब्बत है बस तुमसे।
लेकिन कितनी है ये बात,
तुमसे बतानी रहती है।

माँ की याद

माँ तेरी यादों ने एक बार फिर रुला दिया,
रो रहा था मैं ना जाने कब सुला दिया।
जब जगा तो मन हवा सा हल्का लगा,
आँसुओ ने आज सब दुःख दर्द धुला दिया।
माँ तेरी यादों ने एक बार फिर रुला दिया,
रो रहा था मैं ना जाने कब सुला दिया।
जिन्दगी की आपा धापी में उलझ गयी जिन्दगी,
यह ना सोचना कभी तेरा बेटा तुझे भुला दिया।
माँ तेरी यादों ने एक बार फिर रुला दिया,
रो रहा था मैं ना जाने कब सुला दिया।
जब भी जुबा पर नाम आया तेरा तो,
मुँह में मिठाई का स्वाद घुला दिया।
माँ तेरी यादों ने एक बार फिर रुला दिया,
रो रहा था मैं ना जाने कब सुला दिया।
जब भी जिन्दगी में उलझ कर हिम्मत खत्म हुयी,
तब तुने कभी टूटा हुआ मुझे लगने ना दिया।
माँ तेरी यादों ने एक बार फिर रुला दिया,
रो रहा था मैं ना जाने कब सुला दिया।
बचपन में थामी थी मेरी अँगुलियाँ इस कदर,
आज भी जमाने के असर मे बहकने ना दिया।
माँ तेरी यादों ने एक बार फिर रुला दिया,
रो रहा था मैं ना जाने कब सुला दिया।
जब मैं तेरे सामने आया कभी थका हुआ,
तब तुने अपनी थपकियों से सुला कर आराम दिया।
माँ तेरी यादों ने एक बार फिर रुला दिया,
रो रहा था मैं ना जाने कब सुला दिया।
जिन्दगी आज भी लगती है अधुरी तेरे बिना,
दूर हूँ तुमसे आज लेकिन कभी लगने ना दिया।
माँ तेरी यादों ने एक बार फिर रुला दिया,
रो रहा था मैं ना जाने कब सुला दिया।

हाथ उठाता हूँ हर रोज

                                                                    चित्र- गूगल से साभार

हाथ उठाता हूँ हर रोज,
और दुआ माँगता हूँ।
आज उनके लिये खुशी,
और खुद के लिये सजा माँगता हूँ।
जो मेरा था कभी,
वही छीन लिया गया।
और आज फरिस्ते भी,
मेरी रजा माँगते है।
मेरे दरख्तों कि जो टहनियाँ थी,
अब वो भी सुख गयी।
क्युँ आज पत्ता भी हमसे,
हँसने को हवा माँगते है।
तमाम उम्र उसे ही चाहने का,
एक अनोखा वादा किया था।
आज वही है जो मुझसे,
प्यार की वफा माँगते है।
जो मुझसे कभी जुदा नहीं,
फिर क्युँ मुझसे जुदा माँगते है।
अब तो बस यही लगता है,
मौत भी सौदे कि चीज है।
इसीलिये वे सभी सौदागर,
मेरे मौत का सौदा चाहते है॥