शुन्य : घनाक्षरी

शुन्य है धरती समुची शुन्य ही आकाश है,
क्या हुआ जो मैं नही शुन्य के इतिहास में।

शुन्य ना है अंक कोई भावना का पंक कोई,
शुन्य तो आकार है शुन्य के इतिहास में।

शुन्य ना है भार कोई और ना विकार कोई,
सत्यता ही सत्य है शुन्य के इतिहास में।

शुन्य ना तो राग कोई शुन्य ना वैराग कोई,
शुन्य शुन्य शुन्य है शुन्य के इतिहास मे॥
                       ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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