जरा सा देख लेना घर : ग़ज़ल

चिरागों से उजाला क्या कभी ऐसे मिला होगा,
तुम्हारी याद से जैसे हमारा दिल जुड़ा होगा।

यहाँ जब रात होती है तुम्हारी याद आती है,
तुम्हारी याद में मूरत बना तुमने सुना होगा।

पिला कर ज़ह्र मीठा प्यार का दफना गयी मुझको,
खुदा इससे बचाये यार अच्छा ही सदा होगा।

अगर कुछ याद हो तो तुम जरा सा देख लेना घर,
तुम्हारे घर के कोने में हमारा खत पड़ा होगा।

कहो किसको सुनाये हम हमारे रंज तकलीफें,
पता है जब हमें शामिल न कोई दूसरा होगा।

तुम्हारे नाम पर जीते चले जाना वफादारी,
वफा में जान देने से भला किसका भला होगा॥
                           ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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